साहब की जात


उस गँाव के हरिजन मुहल्ले में ख़ुशी का माहौल छाया हुआ था । घरोघर चिराग़ांे की थालियाँ सजी र्हुइं थीं। चारों ओर त्योहार का सा वातावरण था, आखिर क्यों न हो, मन्नू चमार का लड़का सुखीराम डिप्टी कलेक्टर जो बन गया था। उसने आज ही अख़बार में पी.एस.सी. का रिज़ल्ट देखा था। वह अपने घर के आँगन में लेटा हुआ उपर चाँद को निहार रहा था, और सोच रहा था कि, उसके बाबूजी ने कितने कष्ट सहकर उसे पढ़ाया-लिखाया । अब घर के सारे दलिद्दर दूर हो जायेंगे।
उधर ब्राह्मणपारा में इसी बात को लेकर मातमी माहौल था, विशेषकर गजेन्द्र महाराज के घर पर। गजेन्द्र महाराज उस गाँव के गौटिया थे। वे आज बात-बात पर अपनी पत्नी और लड़के पर बिगड़ रहे थे। अपने लड़के को सुनाते हुए वे कह रहे थे-‘मन्नू के टूरा ला देख...डिप्टी कलेक्टर बन गे, अऊ तैं साले... तोला फुटानी मारे के अलावा दूसर कोई बूता आथे ? आठवीं मं चार घंाव फैल हो गे रेहे।’ अपनी पत्नी पर बिगड़ते हुए वे कह रहे थे-‘तिहीं एला मूड़ मं चघाये हस।’ उनका लड़का सफ़ाई देता हुआ कह रहा था-‘‘माहरा-चमरा मन आरच्छन के सती अधिकारी बन जाथें।’’ उनकी ये चर्चा चल ही रही होती है कि, चरवाहा आकर ख़बर करता है-महाराज सनत नाऊ आये हे।
‘ये साले नऊवा ला अभीच्चे आना रिहिस हे...पठो ओला’, कंझाते हुए गजेन्द्र महाराज कहते हैं।
‘‘पाय लागी महाराज,’’ कहते हुए सनत अंदर प्रवेश करता है।
‘ठाकुर, तैं मोर मूड़ के बने मालिश कर दे... अड़बड़ पिरावत हे साले ह,’ कहते हुए महाराज तखत में लेट जाते हैं।
सनत (मालिश करते-करते) - ‘‘महाराज मैं ह सुने हंव के मन्नू चमरा के टूरा ह डिप्टी कलेक्टर बन गे हे। मैं ह उही डहर ले आवत हंव। देवारी कस सजाये हें पारा ल, साले चमरा मन...। अऊ वो साले मन्नू के नान्हे टूरा ह मोला ठेंगवा देखा के बिजरावत रिहिस हे। महाराज अब तो साले चमरा मन के भाव बढ़ जाही।’’
सनत की बात में दम था। अपने असुरक्षित भविष्य की कल्पना से गजेन्द्र महाराज के माथे पर पसीने की बूँदे चमकने लगीं। सनत के उपर ही अपनी खीज उतारते हुए वे कहने लगे ‘तैं ह साले चुप नहीं रहि सकस..., जब ले बकर-बकर करत हस.., सियान मन सही केहे हे, पंछी मं कौव्वा अऊ जात मं नऊव्वा...।’
सनत खी-खी कर हँसने लगता है, मानों गजेन्द्र महाराज ने कोई चुटकुला सुनाया हो। ‘तैं देख लेबे सनत ये देस ह नई बाचे..., अरे गृह-जुद्ध होही, गृह-जुद्ध...। संविधान ह बदल जाहि । पठान मन के देस मं जब मुसलमानी व्यवस्था हो सकथे, त इहाँ वर्ण-व्यवस्था काबर लागू नहीं हो सकय...? बांभन धरम के पुनर्रूत्थान होही, तैं ह देखत रहिबे । देख लेबे तैं ह...।’ आख़री शब्दों तक महाराज की आवाज़ इतनी धीमी हो गई, मानों उन्हें खुद इस बात पर यकीं न हो।
‘‘लेकिन महाराज, मैं ह तो सुने हंव के, माहरा मन बुद्ध धर्म ला स्वीकार कर ले हें। सतनाम धरम ला तो तैं ह जानतेच हस...। अपन बर-बिहाव मं ओमन बांभन मन ला पूछे तको नहीं...। जशपुर डहर के आदिवासी मन ह ईसाई धरम ला स्वीकार कर ले हें । महाराज बांभन धरम ले दूसर धरम मं परिवर्तन तो सुने हंव, लेकिन दूसर धरम ले बांभन धरम मं परिवर्तन नई सुने हंव। कभू-कभार दू-चार झिन आदिवासी मन ल धर के वापस बांभन धरम मं लाये के बात करे जाथें, अऊ ‘घर वापसी’ नाम से नेतागिरी करथें। ऐखर का कारण आय ?’’
‘बहुत बोले ला सीख गे हस रे बाबू...,’ गजेन्द्र महाराज खिसियाकर कहते हैं। तभी चरवाहा आकर सूचना देता है - महाराज मन्नू चमरा आये हवय।
‘पठो ओला,’ कहते हुए गजेन्द्र महाराज उसी तख़्त में उठकर बैठ जाते हैं।
मन्नू अंदर प्रवेश करता है, और वहीं दरवाज़े के पास बैठ जाता है।
महाराज - ‘‘अरे मन्नू, तैं हं अतेक दूरिहा काबर बईठे हस बे ? अब तो तोरो भाव बढ़ना चाहि, तोर बेटा साहब जो बन गे हे।
मन्नू (विनीत भाव से) -‘‘सब आप मन के आसीस के परताप हे महाराज।महाराज मैं ह अपन जात, अऊ औक़ात ल कभू नई बिसरांव।’’
महाराज -‘अरे नहीं बे...भगवान के बनाये सब आदमी बराबर हें... सुन तैं ह काली सुखी ला मोर कर पठो देबे...मैं ह ओला बड़े आदमी मन के बीच मं बईठे-उठे के तरीका सीखो दुंहँू।
‘‘मेहरबानी महाराज’’, कहता हुआ मन्नू प्रस्थान कर जाता है।
अगले दिन सुबह सुखीराम महाराज से मिलने जाता है, और अपने मानसिक ग़ुलाम पिता की ही भाँति वह भी दरवाज़े के पास ही बैठ जाता है।
महाराज -‘अरे बेटा सुखी, तैं ह काबर अतेक दूरिहा बईठे हस...तोर जगा तो मोर बाजू मं हे।’
सुखी सकुचाते हुए माहराज की बाजू में जाकर बैठ जाता है।
‘बेटा तैं हं पढ़-लिख के साहब तो बन गे हस, लेकिन दुनियादारी ल नई जाने हस। तैं ह पढे़ तो हस रे बाबू, लेकिन कढ़े नई हस। यदि तैं अपन जात-समाज के बीच मं फँसेस त कभू नई उबर सकबे। अब तैं ह बड़े आदमी बन गे हस, अऊ साहब मन के जात मं सामिल होगे हस रे। गजेन्द्र महाराज ने पांसा फंेका।
सुखी को महाराज की बातों में दम नज़र आया। रात में ही तो मुहल्ले के सारे बेरोज़गार लड़के उसे घेर लिये थे। चाचा का लड़का साला दसवीं भी पास नहीं है, और बाबू बनना चाह रहा था। कह रहा था-भैय्या हमको भूलना मत...। शहर में हम तुम्हारे साथ ही रहेंगे। मामा का लड़का चपरासी बनने का ख़्वाहिशमंद था। वह भी उसी के साथ शहर में रहना चाह रहा था। हँू मानों घर न हुआ, धरमशाला हो गई। सुखी अपने में खोया हुआ था कि, उसे फिर से महाराज की आवाज़ सुनाई पड़ी -‘तैं ह यदि अपन जात मं बिहाव करबे त तोर तरक्की नहीं हो सकय...तैं ह उहींचे बने असन टूरी संग बिहाव कर लेबे। महाराज ने अगला दाँव फेंका।’
‘‘लेकिन ये मन तो मोला जात बाहर कर दिहीं।’’ सुखी ने आशंका व्यक्त की।
‘मैं ह तोला बतात तो हंव के अब तैं ह साहब मन के जात म सामिल हो गे हस...।’ महाराज ने उसकी आशंका दूर की।
सुखी प्रसन्न मन से अपने घर चला जाता है।
घटनाओं में परिवर्तन हो रहा है। सुखी अधिकारी बनकर साहब की जात में शामिल हो गया है। उसने दूसरी जाति की लड़की से लवमैरिज़ भी कर ली है। वह क्लब भी जाने लगा है। उधर गजेन्द्र महाराज उसे अपना मानसिक ग़ुलाम बनाये रखने की अपनी सफलता पर मुग्ध हैं। मन्नू के हृदय में रोज़ रोज़ नये ज़ख्मों का जन्म होता है, टीसें करवटें बदलती हैं। वह अपने को एक हारा हुआ विजेता मानने लगा है। हरिजन मोहल्ले में एक बोझिल सा सन्नाटा पसरा हुआ रहता है। मन्नू अपने बीत्ते भर के लड़के द्वारा सिखाये गये रिश्तांे के गणित में उलझा हुआ है।

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लेखक का संक्षिप्त परिचय
नाम - आलोक कुमार सातपुते
जन्म - 26/11/1969
शिक्षा- एम.कॉम.
प्रकाशित रचनाएंॅ- हिन्दी और उर्दू में समान रूप से लेखन। देश के अधिकांश हिन्दी-उर्दू पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। पाकिस्तान के अंग्रेजी अख़बार डान की उर्दू वेबसाईट में धारावाहिक रूप से लघुकथाओं का प्रकाशन।
संग्रह का प्रकाशन-
1 शिल्पायन प्रकाशन समूह दिल्ली के नवचेतन प्रकाशन,से लघुकथा संग्रह अपने-अपने तालिबान का प्रकाशन।
2 सामयिक प्रकाशन समूह दिल्ली के कल्याणी शिक्षा परिषद से एक लघुकथा संग्रह वेताल फिर डाल पर प्रकाशित।
3 डायमंड पाकेट बुक्स, दिल्ली से कहानियों का संग्रह मोहरा प्रकाशित ।
4 डायमंड पाकेट बुक्स, दिल्ली से किस्से-कहानियों का संग्रह बच्चा लोग ताली बजायेगा प्रकाशित ।
5 उर्दू में एक किताब का प्रकाशन।
अनुवाद - अंग्रेजी उड़िया ,उर्दू एवम् मराठी भाषा में रचनाओं का अनुवाद एवं प्रकाशन ।

आलोक कुमार सातपुते, 832, सेक्टर-5 हाउसिंग बोर्ड कालोनी, सडडू, रायपुर-492007 (छत्तीसगढ़) मोबाइल -09827406575