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भीतर

नदी के तट पर
घंटों तक बैठी रहती हूँ
कुछ लगाव-सा
महसूस होता है
इस नदी से
न जाने कितने पापों को
अपने साथ लेकर
बहती जाती है...
फिर भी पवित्र है
और मैं?
एक पाप को लेकर
अपवित्र हो जाती हूँ,
सामने बैठे नाविक ने
आकर पूछा -
कहाँ जाना है आपको?
नहीं जानती थी मैं
मुझे कहाँ जाना है
सहसा मेरी भीतर से
एक आवाज आई -
भीतर

बीना वीर, गुजराती विभाग, मानवविद्या भवन, सरदार पटेल युनिवर्सिटी, वल्लभ विद्यानगर, आणंद -३८८१२०