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वृदावनलाल वर्मा के ऐतिहासिक उपन्यास - मृगनयनी का पूनर्मूल्यांकन
वृदावनलाल वर्मा का जन्म 9, जनवरी सन - 1889 मऊरानीपुर नामक गाँव के झाँसी जिले के उत्तर प्रदेश राज्य में हुआ था । वर्माजी के रचना संसार में ऐतिहासिक उपन्यास सामाजिक उपन्यास, नाटक, कहानी, आत्मकथा, एकांकी आदि प्रकार की रचनाये है । जिसमें से एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास मृगनयनी है, जिसकी रचना वर्माजीने इ.स. 1950 किया और प्रकाशन वर्ष भी इ.स. 1950 ही है । मृगनयनी में ग्वालियर के राजा मानसिंह एवं मृगनयनी की है । प्रेम-कथा है, जो आग्फे सफल होकर पति-पत्नी अर्थात राजा-रानी के रूप में प्रचलित बनते है । जिसका यहाँ पर "वृदावनलाल वर्मा के ऐतिहासिक उपन्यास मृगनयनी का पूनमूल्याकन" के रूप में एक शोधलेख लिखने का प्रयास है । जो नीचे निम्नानुसार है -

मृगनयनी ऐतिहासिक उपन्यास

मृगनयनी वर्मा जी का वृहद ऐतिहासिक उपन्यास है । कथा ग्वालियर तोमर वंशीय शासक मानसिंह से सम्बन्धित है । मानसिंह तोमर का शासनकाल १४८६ से १५१६ तक माना जाता है । इस युग की आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक उथल-पुथल के साथ ही, जो भारतीय सांस्कृतिक तत्त्व विकास पर थे उनका चित्रण कथा में मिलता है। इन सांस्कृतिक तत्वों का निर्वाह राजा मानसिंह, रानो मृगनयनी, लाखो, अटल, निहालसिंह, कला, विजय जंगम, बैजूबावरा आदि पात्रों द्वारा किया गया है । कथा दो रोमांस प्रसंगों को लेकर चली है । एक मानसिंह और मृगनयनी का, दूसरा प्रसंग लाखो और अटल का । रोमांस वर्माजी का प्रिय विषय रहा है और प्रत्येक उपन्यास में इसका चित्रण हुआ है । परन्तु सदैव ही यह भारतीय मर्यादाओं के अन्दर रहा है, उसमें कही भी अश्लीलता या नग्नता नहीं आ पाई है । इस उपन्यास के भी दोनों मुख्य प्रणय प्रसंग गाम्भीर्य और पवित्रता लिए हुए है । इनमें कहीं भी छिछोरापन या वासना की गन्ध नहीं मिलती ।

बहलोल लोधी और उसके उत्तराधिकारी सिकंदर लोधी जैसे आक्रमणकारियों के आक्रमण से संपूर्ण ग्वालियर राज्य ध्वस्त हो गया था । उनकी बर्बरता से ग्राम नगर वीरान हो गए धे, कृषि और व्यावसाय उजड़ गए थे । ग्वालियर राज्य के समीपस्थ राई ग्राम की भी यही दशा धी । युद्ध की समासि पर अपने टूटे मनोबल में कृषक अपने कार्यों में संग्लन हो गए । उसी गांव में गूजर जाति के अटल और बिन्नी नाम के भाई-बहन रहा करते थे । उनके पड़ोस में दूसरे गांव से आकर बसने वाली एक अहौर युवती लाखो भी अपनी वृद्ध माता के साथ रहती थी । अपनी समवयस्कता में मिनी और साखी की प्रगाढ़ मैत्री थी । दोनों साथ साथ जंगलों में शिकार खेलती तीरंदाजी का अभ्यास करती । दोनों के रूप मौन्दर्य और शौर्य की चर्चा होने लगी । मालवा का गयासुद्दीन तथा गुजरात का मुल्तान महमूद वधरां उनकी प्राप्ति के लिए व्यग्र हो उठे । गयासुद्दीन ने नट-बेड़ियो के द्वारा उन दोनों को पकड़ने की योजना बनाई ।

एक दिन निन्नी और लाखी सुअर और अरने के शिकार कर घर लौटीं तो उन्होंने देखा कि लाखी की माँ मरी पड़ी है । लाखी बिलख - बिलख कर रोने लगी । उसके लिए संसार अंधकारमय हो गया था, किन्तु निन्नी और अटल ने संतप्त हृदय से लाखी को सांत्वना दी और अपने साथ रख लिया । तीनों साथ रहकर सुख-दुःख के सहभागी बन गए । अटल और लाखी प्रेमसूत्र में बंध गए । ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर से राई गाँव का पुजारी बोधन शास्त्री अपने मंदिर के जीर्णोद्वार के निवेदन क्रम में दोनों के रूप गुण की चर्चा कर चुका था । राजा ने राई गाँव में आने के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया था । इधर गयासुद्दीन के नट-बेडिये राई गाँव के नजदीक जंगल में अपना डेरा डाल चुके थे । निन्नी (मृगनयनी) और लाखी को मांडू ले जाने की उनकी योजना बनने लगी थी। जब दोनों जंगल में शिकार खेलने गई तो वे नटों की विलक्षण करामातों से विशेष आकर्षित हुई । लाखी ने तो उनके सदृश रस्सी पर चलने का अभ्यास प्रारंभ कर दिया । धीरे-धीरे नटों से लेन-देन का भी संपर्क हो गया । इन दोनों ने अपने शिकार में प्राप्त एक सूअर को देकर उनसे कुछ गुड़ और चावल लिए । गयासुद्दीन के द्वारा दिए गए वस्त्रालंकारों को दिखा पिल्ली नटिनी उन्हें प्रलोभन देने लगी । फिर तंत्र-मंत्र की बातें चली । नटिनी ने दोनों का हाथ देखकर भविष्यवाणी की कि निन्नी किसी बड़े राजा से ब्याही जाएगी और लाखी किसी बड़े किलेदार से । इस प्रकार उनसे उन दोनों का संपर्क बढ़ता गया ।

अटल आठ दिन पूर्व ग्वालियर गया था । वहाँ से लौटा तो तीर, बर्छियों के साथ उनके लिए कुछ वस्त्र और आभूषण भी लेता आया । प्रसन्नता के साथ दोनो ने सारी वस्तुएँ ले ली । जब दूसरे दिन वे शिकार खेलने गई तो उन्हे जंगल में गयासुद्दीन के चार सवारों ने घेर लिया । उनकी नियत से दोनो परिचित हो गई । एक को निन्नी ने अपनी बी से और एक को लाखी ने अपने तीर से मार गिराया । शेष सवार प्राण बचाकर भाग निकले । गाँव में जब इसकी चर्चा हुई तो सभी युद्ध के अज्ञात भय से आंशकित हो उठे । ग्रामीणों ने निवेदन कर बोधन पुजारी को सुरक्षा हेतु से पुनः ग्वालियर में राजा के पास भेजा । ग्वालियर पहुँचकर बोधन ने राजा को सारा वृतांत कह सुनाया । राजा मानसिंह ने सशंकित ग्रामीणों को आश्वस्त करने के लिए शीघ्र राई गाँव में जाने की योजना बनाई । दूसरे दिन राजा के आगमन की सूचना पाकर गाँव के सभी स्त्री-पुरुष उनकी आरती उतारने दौड पड़े। निन्नी के अद्वितीय सौन्दर्य को देख राजा मानसिंह विस्मय-विमुग्ध हो उठे । अगले दिन राजकीय आखेट का आयोजन हुआ । निन्नी और लाखी ने अपने अपूर्व शौर्य का परिचय दिया । निन्नी ने अपने एक तीर से नाहर को मार गिराया और वई से अरने को घायल कर उसके सींग पकड़ पीछे ठेल दिया । राजा मानसिंह उसके रोमांचक शौर्य से अभिभूत हो गए । उन्होंने अपने गले की स्वर्णमाला उतारकर निन्नी के गले में डाल दी और उससे आजीवन संगिनी बनने का वचन राजा के हाथ में अपना हाथ दे निन्नी ने अपनी मौन स्वीकृति प्रकट की । मानसिंह और निन्नी का विवाह संपन्न हो गया । निन्नी मृगनयनी बनकर राजा मानसिंह के साथ ग्वालियर आयी । इसके बाद अटल ने लाखी के समक्ष अपने विवाह का प्रस्ताव रखा । लाखी ने स्वीकृति दे दी । अटल बोधन पुजारी के पास विवाह का मुहूर्त निकलवाने गया, बोधन पुजारी ने उसके विवाह को वर्णाश्रम धर्म के विरुद्ध बतलाकर अस्वीकार कर दिया । यही आधुनिकता है, जो अटल ने अपने प्रेम सम्बन्ध को विवाह स्वरूप प्रदान करने हेतु वह बोधन पुजारी के समक्ष विचार रखता है, परन्तु बोधन इसे वर्णाश्रम का कारण बताकर अस्वीकार करता है यह जो अटल की हिंमत है यही आधुनिकता है । जो इस उपन्यास में अच्छे ढंग से व्यक्त हुआ है । क्षुब्ध होकर अटल ने गंगाजल को साक्षी मानकर लाखी को अपनी पत्नी मान लिया। उसने अपने विवाह का गाँव में प्रचार कर दिया । गाँव वाले उसे घृणा की दृष्टि से देखने लगे । सामाजिक बहिष्कार के साथ उसे यह आशंका थी कि आस-पास के अहीर आकर उसे कष्ट न दे ।

अटल और लाखी गाँव छोड़ नटों के साथ नरवर के समीप मगरोनी चले आए । इधर नवाब गयासुद्दीन नरवर पर अपनी सेना लेकर आ धमका । मगरोनी से भाग सबने नरवर के किले में शरण ली । एकांत में पिल्ली नटिनी ने लाखी को बतलाया कि सुल्तान उसी की खोज करता-करता यहाँ तक आया है । सारे रहस्य को जानकर लाखी की भौहै फड़क उठी । उसने अपने को नियंत्रित रखते हुए । सुल्तान के पास जाने की सहमति प्रकट की । रात को भाग निकलने की योजना बनाई गई । किले के कंगूरे से बाहर के वृक्ष से रस्सी फंसा दी गई । सभी नट एक-एक कर उतर गए । जब पिल्ली जाने लगी तो लाखी ने अपने तेज छुरे से रस्सी काट दी । पिल्ली खाई में गिरकर सदा के लिए समाप्त हो गई । जब सारी स्थिति अटल को मालूम हुई तो वह अवाक रह गया। किले के सभी सैनिक सतर्क हो गए । गयास ने नरवर पर भरपूर आक्रमण किया, परन्तु ग्वालियर से मानसिंह के आ जाने पर उसका आक्रमण विफल हो गया । मानसिंह ने लाखी के शौर्य से प्रभावित होकर मोतियों की माला उसके गले में डाल दी । उन्होनें नरवर किले की जागीर अटल के नाम लगा दी, परन्तु व्यवस्था पूर्ववत् रखी । कुछ दिनों के बाद वे लाखी और अटल को साथ लेकर ग्वालियर लौट आये । लाखी और अटल का विधिवत् विवाह संपन्न हुआ । राई गाँव में गढ़ी बनाकर राजा मानसिंह ने अटल को वहाँ की जागीर दे दी । अटल ने अपने विवाह की बात बोधन पंडित से की, परन्तु बोधन पंडित ने वर्णाश्रम से अलग होने का कारण बताया, इसके बाद अटल ने हिम्मतपूर्वक लाखी को अपना लिया और आज उन दोनों का विवाह सम्बन्ध भी हो गया है और मानसिंह के द्वारा अटल को जागीर भी दी जाती है यहाँ पर हमें आधुनिकता दिखाई देती है कि अटल में वर्तमान समाज का सामना करने की क्षमता और सामर्थ्य है। जिससे वह बिना हिचकिचाहट के अपने विचारों को बोधन पंडित के समक्ष प्रस्तुत करता है, बोधन पंडित के मना करने पर भी वह हिंमत नहीं हारता परिस्थितियों के साथ लड़ता है। यही आधुनिकता है।

मृगनयनी के विचारो में नवीनता

राजा मानसिंह की आठ रानियाँ पहले से ही थीं । मृगनयनी के प्रति राजा का विशेष आकर्षण देख बड़ी रानी सुमनमोहिनी उससे ईर्ष्या करती थी । कई बार वह विष देकर उसकी हत्या का असफल प्रयास कर चुकी थी, परन्तु मृगनयनी निरन्तर मर्यादानुकुल आचरण करती रही । यही आधुनिकता है, जो किसी भी परिस्थिति में मृगनयनी अपने को उसका अनुकूल बना लेती है। कभी भी किसी भी समय घबराती नहीं है । हिम्मत-धीरज के साथ आगे प्रगति करती है । मृगनयनी के इस पात्र से हमें आधुनिक बोध मिलता है । राई गाँव से आने के बाद उसने संगीत तथा अन्य कलाओं का अध्ययन मनन शुरू कर दिया था । उस बीच राजा मानसिंह ने कई मन्दिर और भवन बनवाए । प्रजाहित के लिए भी उसने अनेक कार्य किए ।

कुछ दिनो के बाद ग्वालियर पर सिकन्दर लोधी का पुनः आक्रमण हुआ । राईगढ़ की रक्षा में लाखी ने अपने अद्वितीय शौर्य का प्रदर्शन किया । कई शत्रु सैनिकों को मौत के घाट उतारती हुई उसने वीरगति प्राप्त की । अटल भी भयंकर युद्ध करता हुआ मारा गया । उनकी मृत्यु का समाचार सुन मृगनयनी को अत्यन्त दुःख हुआ । सिकन्दर ने नरवर के किले पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। वहा की सारी मूर्तियों को तोड़-तोड़ नगर को वीरान बनाकर राजसिंह को नरवर की जागीर दे, वह दिल्ली लौट आया। मृगनयनी अपनी ढलती अवस्था के साथ संगीत कला आदि की साधना में विशेष रुचि लेने लगी। उसे दो पुत्र थे, राजसिंह और बालसिंह । उत्ताराधिकार के प्रश्न पर उसने सुमनमोहिनी के पुत्र विक्रमादित्य को अधिकार दिलाया । उसके इस त्याग से राजा मानसिंह विह्वल हो उसे गले लगा लिया । यहाँ पर आधुनिकता प्रकट होती है एक विशेष त्याग और समर्पण की भावना मृगनयनी में है, जो सभी में नहीं होती । वह अपने पुत्र को उत्तराधिकार न दिलाकर बल्कि बड़ी रानी के पुत्र को अधिकार दिलाती है। इससे हमें आधुनिकता बोध प्राप्त होता है । डॉ. द्वारिकाप्रसाद सक्सेना ने कहा है कि जनश्रुतियों और किंवदन्तियों के आधार पर अटल और लाखी की कथा ली है। शेष पिल्ली, पोटा आदि नटों की कथा कल्पना प्रस्तुत है । अतएव मुख्य कथा के साथ अन्य सभी कथाओं को सम्बद्ध करके वर्माजी ने इस उपन्यास की कथावस्तु को अत्यन्त सुव्यवस्थित, रोचक, गतिशील, आकर्षक और मर्मस्पर्शी बनाने का सफल प्रयास किया है ।

चरित्र-चित्रण

चरित्र-चित्रण की दृष्टि से जिन चरित्रों को उपन्यास के विस्तृत परिवेश में प्रस्तुत किया गया है, उनसे तत्कालीन राजा-महाराजा, नवाब-सुल्तान, सैनिक सेनानायक, गाँव और नगर के सामान्यजन, मंदिर के पुजारी और कर्मकांडी पंडित, शैव-वैष्णव, नट-बेड़िये, संगीतज्ञ आदि का समुचित एवं विश्वस्त परिचय मिल जाता है । उपन्यास के प्रमुख पुरूष और नारी पात्रों में राजा मानसिंह, अटल, बोधन पंडित, विजय जंगम, निहालसिंह, बैजू, राजसिंह, गयासुद्दीन, नसीरुद्दीन सुलतान बघर्रा, सिकन्दर लोधी, मृगनयनी, लाखी, सुमन मोहिनी, पिल्ली नटिनी, कला इत्यादि हैं।

मृगनयनी

मृगनयनी असीम सौन्दर्य और शौर्य से समन्वित नायिका है । सम्पूर्ण उपन्यास में उसका महान चरित्र दो पक्षो में विभाजित है, राई गाँव की युवती मृगनयनी और ग्वालियर की सुसंस्कृति गौरव-सम्पन्न महारानी मृगनयनी राई गाँव की मृगनयनी का चरित्र जितना आकर्षक है उतना ही सुरुचि-सम्पन्नता में ग्वालियर की महारानी मृगनयनी का व्यक्तित्व भव्य है । राई गाँव की मृगनयनी अदम्य उत्साह और शौर्य की प्रतिमा है तो ग्वालियर की महारानी कला और कर्तव्य की उपासिका । राई गाँव की मृगनयनी तीर कमान बी लेकर शिकार की खोज में जंगलो में निर्भय घूमती फिरती है, एक ही तीर से नाहर, तेंदुए, सूअर मार डालती है, रात को मचान पर बैठ खेतों की रखवाली करती है और घर के छोटे-बड़े कार्यों की देखरेख करती है, परन्तु ग्वालियर की मृगनयनी महारानी की आभिजात्य मर्यादा में मर्यादित हो जाती है । वह नृत्य, संगीत, चित्र, तथा स्थापत्य-कला में तल्लीन हो जाती है । प्रकृति के उन्मुक्त वातावरण में ग्रामीण सहजता और सरलता के साथ अल्हड़ और प्रगल्भता से पूर्ण उसके रमणीय और स्वाभाविक चरित्र को जिस प्रकार आभिजात्य परिवेश में कलात्मक व्यंजना के साथ सुरुचि-संपन्न एवं गम्भीर व्यक्तित्व के रूप में परिवर्तित कर उभारा गया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है ।

उसके चरित्र-परिवर्तन में लेखक की कल्पना अप्रत्याशित रूप में व्यक्त नहीं है, एवं उसके अनेक पूर्व-संकेत है । विवाह के पूर्व की स्थिति में वह कितनी महत्वाकांक्षिणी है । प्रतिकूल परिस्थिति में भी उसके मन में अपने अनुकूल पति की आकांक्षा है, तभी तो अपनी सगाई की बात चलने पर वह लाखी से कहती है - भैया से कहना कि सगाई की चर्चा को आगे न बढ़ावे । मैं ब्याह न करूंगी । उसके अचेतन मन में रानी बनने की कामना उसकी इस उक्ति से चरितार्थ होती है, राजा लोग अपने थोड़े से भाई बंधुओं को किसी गढ़ में बंद करके लडते-लड़ते मर जाते है और उनकी स्त्रियाँ चिता में जलकर भस्म हो जाती है । क्या ये स्त्रियाँ तीर-कमान चलाना नहीं जानती होंगी? क्या इनके खेत नहीं होंगे, जिनकी रखवाली करने के लिए उसको मचान पर तीर कमान और तलवार लेकर बैठना पड़ता हो? उनके खेत नहीं होगे, क्योंकि रानिया तो पर्दे में मुंह छिपाए बैठी रहती हैं । सुनती तो यही आई हूँ परन्तु क्या उनके हाथ-पैर इतने निकम्मे होते होंगे कि अपने ऊपर आँख और हाथ डालने वाले पुरुषो को घूसे से धरती न सुघाँ सके? कैसी स्त्रियाँ होंगी ये, खाने को इतना और ऐसा अच्छा मिलते हुए भी मन उनके ऐसे मरियल, चिता में जलकर मरी स्त्रियों पर हाथ डालने वाले मैं तो कभी इस तरह नहीं मरने की । हास परिहास में ही सही, नटिन की भविष्यवाणी भी उसकी रानी बनने का एक भविष्य संकेत है । वह मृगनयनी का हाथ देखकर कहती है तुम तो बेटी बड़ा भारी राज्य भाग्य में लिखाकर लाई हो । राजा की नही किसी बड़े महाराजा की रानी बनेगी । झूठ निकले तो जीभ काटकर फेंक देना ।

रानी के विचारो में आधुनिकता

रानी बनने पर वह अपने परिजनों को भूलती नहीं है । बालसखी लाखी और अपने भाई अटल के प्रति अटूट स्नेह रखती है । उन दोनों का विधिवत विवाह सम्पन्न करा उन्हे जागीरदारी दिलाती है । उन दोनों की मृत्यु पर उसके शोक-संतप्त हृदय को प्रस्तुत करते हुए लेखक ने लिखा है मृगनयनी ने लाखी के कार्य और मरण-वृत्तांत और अपने भाई के शौर्य का संक्षिप्त वर्णन जब सुना, तब उसने अपनी छाती की बज्र की तरह कड़ा किया । हिचकियाँ गले के भीतर लहरों के थपेड़ो की तरह आई परन्तु आगे न बढ़ सकी । मृगनयनी के चरित्र में अपूर्व शौर्य और संयम के साथ धैर्य त्याग की भावना है । रानी सुमन मोहिनी की सपत्नी सुलभ ईर्ष्या और उसके दुष्परिणामों को भूलकर वह राज्याधिकार अपने पत्र को उसके पुत्र को दिलाती है । भयंकर भूकंप आने पर वह राजा मानसिंह से कहती नहीं, भगवान की मुस्कान का ध्यान करिए, शिव के तांडव का । धैर्यशांति प्राणनाथ अंत के अनंत के सामने डट जाइए । निश्चय ही, मृगनयनी का चनि सौन्दर्य, शौर्य, संयम, आत्मविश्वास संकल्पशक्ति, कलाप्रेम, त्याग, क्षमा. आदर्शपरक गुणों के सम्मिलन से अपना स्थायी प्रभाव छोड़ता है ।

उद्देश्य

मृगनयनी के संबंध में लेखक ने लिखा है १९४९ के अन्त में ग्वालियर की सम्मानित पाठिका ने मुझे मृगनयनी और मानसिंह तोमर के ऐतिहासिक रूमानी कथानक पर उपन्यास लिखने का अनुरोध किया । इस संबंध में वर्माजी ने अपनी कहानी में विस्तार के साथ लिखा है । अपनी रुचि के अनुसार उन्होंने तत्कालीन इतिहास, लोककथाओं और परंपराओं का पूर्ण पर्यवेक्षण किया और मानसिंह तोमर तथा मृगनयनी के ऐतिहासिक तथ्यों में कल्पना और रोमांस के रोचक समुच्चय से इस आकर्षक उपन्यास का सर्जन किया । उपन्यास के प्रतिपादित विचारों एवं उद्देश्यों में सौंदर्य और शौर्य, पावन प्रेम और नारीत्व की गरिमा, श्रम और कर्तव्य भावना जातिगत संकीर्णता का परित्याग, अंतरजातीय विवाह रूढ़िवादिता और धार्मिक आंडबरों का विरोध आदि को कहीं बिंब के रूप में, कहीं प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत किया गया है । उपन्यास में निहित सौंदर्य, शौर्य और पावन प्रेम के कारण ही इसे ऐतिहासिक रोमांस की संज्ञा दी गई है । किन्तु वर्णनों में रोमांस की अतिशयता का दुराग्रह नहीं है। वह नितांत काल्पनिक, भ्रामक और असंभाव्यता पर आधारित नहीं है । असीम सौंदर्य और शौर्य की प्रतिमूर्ति मृगनयनी और लाखी का चरित्र व गरिमा भी अभिव्यक्त है । मृगनयनी मानसिंह से प्रश्न करती है और स्त्रियाँ काहे के लिए है ? क्या वे वाच्छा और कामना की श्रृंगार मात्र हैं ? मानसिंह तत्काल उत्तर देता है - नहीं जीवन की प्रेरणा, प्रातःकाल की ऊषा जैसी सजग करनेवाली है । मानसिंह एक स्थल पर उसके संयम पर अधिष्ठित प्रेम की दृढ़ता की प्रशंसा करता हुआ कहता है - तुम संयम से प्रेम को अचल बनाती हो और मैं अपने विचार से उसको चंचल कर देता हूँ । संयम के आधारवाला प्रेम ही आगे टिके रहने की सामर्थ्य रखता है । वर्माजी ने अपनी आदर्श नारी के चरित्र की जीवंत कल्पना की है, स्त्री का गौरव, सौन्दर्य, महत्व स्थिरता में है, जैसे उस नदी का जो बरसात के मटमैले, तेज प्रवाह के बाद शरद में पीले जलवाली मंथर गतिगामिनी हो जाती है दूर से बिल्कुल स्थिर, बहुत पास से प्रगतिशालिनी ।

मृगनयनी भावना और कर्तव्य को जीवन का अनिवार्य तत्व मानती है । एक-दूसरे के अभाव में जीवन अपूर्ण है । वह अपने पति को अनुप्रेरित करती हुई कहती है संकल्प और भावना जीवन के दो पलड़े है। जिसको अधिक भार से लाद दीजिए, वहीं नीचे चला जाएगा । संकल्प कर्तव्य है और भावना कला । दोनों के समान समन्वय की आवश्यकता है । वास्तविक कला का धर्म उसकी दृष्टि में कर्तव्य का स्मरण करना है, जो कला कर्तव्य का विस्मरण कराती है, वह कला नहीं है । बोधन शास्त्री को लेखक ने धार्मिक और जातिगत रूढ़ियों के पक्षधर के रूप में प्रस्तुत किया है । इसके विपरीत उसके विजयजंगम को प्रगतिशील नवीनतम विचारों के अनुकूल बनाया है । वह धार्मिक आंडबरों को स्वीकर नहीं करता है, परन्तु खुलकर उनका विरोध करता है । बोधन शास्त्री के विचार अपनी रूढ़िवादिता में उपहासापट । वह राजा को अंतरजातीय विवाह की स्वीकृति इसलिए देता है कि देवता का, सर्वोपरि है, उसके लिए सब क्षम्य है । परन्तु लाखी और अटल का विवाह उपर वर्णाश्रम धर्म के विरुद्ध है, क्योंकि वे सामान्य हैं । इसके लिए वह राज्य त्याग कर वह मानसिंह से स्पष्ट कहता है - महाराज, एक दरिद्र परन्तु निर्लोभ ब्राह्मण से बात हैं । धर्म बेचा नहीं जा सकता है । क्षत्रिय ब्राह्मण को उपदेश देने के लिए नहीं बनाए धर्म और गौ ब्राह्मण की रक्षा के लिए बनाए गए हैं । परन्तु मानसिंह सांप्रदायिक हठधति असहिष्णुता आदि को व्यर्थ की बातें कह अवहेलना की दृष्टि से देखता है। उसके लिए की का दायित्व ही सर्वोपरि है।

निस्संदेह मृगनयनी अपनी उत्कृष्टता में हिन्दी के चुने हुए और शीर्षस्थ उपन्यासों में से एक है । इसके संबंध में लेखक ने लिखा है कि पाठकों और समालोचकों ने उसके संबंध में मेरे ऊपर अपना जो स्नेह बरसाया है, उससे मैं बहुत प्रोत्साहित हुआ । मृगनयनी के संबंध में सबसे विशिष्ट बात यह है कि यह हिन्दी साहित्य में पहला उपन्यास है, जिसमें स्थापत्य कला के मूर्त अभिप्रायों की प्रेरणा के मूल में जीवनस्रोत का सरस सिंचन ऐसी मनोहरता से प्रवाहित हुआ है । निश्चिय ही मृगनयनी अपने औपन्यासिक कला सौष्ठव में गौरवशाली रचना है । विभिन्न मानवीय प्रवृत्तियों के साथ इसमें लोकमंगल और लोकरंजन से अनुप्रेरित जीवनादर्श का सजीव और सार्थक अभिव्यक्ति है । वर्माजी ने मृगनयनी उपन्यास की रचना इस उद्देश्य से की है कि भारत में लौकिक आदर्श राज्य की स्थापना हो, धार्मिक सहिष्णुता द्वारा जनता में एकता स्थापित हो, धर्म से अधिक राष्ट्रीय कर्तव्य को महत्व प्रदान किया जाए, अन्तर्जातीय विवाह का समाज में प्रचलन हो, श्रम की महत्ता स्थापित की जाए, ललित कलाओं का देश में समुचित प्रचार एवं प्रसार हो, रूढ़िवादिता एवं जातिपाति की संकीर्णता के विरूद्ध जनमानस जागरूक हो, नारी शक्ति को प्रेरणा के रूप मे ग्रहण करने की ओर ध्यान दिया जाए, फैशन को महत्व न दिया जाए, कला एवं श्रम तथा कर्तव्य के समन्वय पर बल दिया जाए, सच्चे एवं शुद्ध प्रेम को महत्व प्रदान किया जाए, जीवन को समृद्ध बनाने का प्रयास किया जाए, संयम और नियम के साथ जीवन यापन करने पर बल दिया जाए और कलाकार को पूरी आस्था, श्रद्धा और भक्ति के साथ कला की उपासना करने की स्वतन्त्रता दी जाए । इस प्रकार वर्माजी ने एक जागरूक उपन्यासकार की तरह जर्जर और रूढ़िग्रस्त सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं को अपने प्रहारों का लक्ष्य बनाया है, अनेक राष्ट्रीय, जातीय एवं धार्मिक समस्याओं की और इंगित करके उनका समाधान प्रस्तुत किया है और झूठे ढोग, ढकोसलों, अन्धविश्वासों और सामंतीय नियमों पर कड़ा व्यंग्य किया है । कुछ विद्वानों ने मृगनयनी को सामन्तवाद का पोषक उपन्यास कहा है, परन्तु यह सत्य नहीं है, क्योंकि यहाँ पर वर्माजी की सहानुभूति सदैव जन-साधारण के प्रति रही है और सर्वत्र उसके अधिकारों का ही समर्थन किया है । इसके अतिरिक्त वर्माजी ने यहाँ संतुलित मानव-जीवन की झाँकी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और बताया है । कि शारीरिक स्वास्थ्य ही मानवता के निर्वाह की पहली अनिवार्य सीढ़ी है । स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है । इसके अतिरिक्त, श्रम, स्वच्छता और कला की उपासना से ही जीवन समृद्ध होता है । अतः मृगनयनी उपन्यास भी आदर्शवाद की पृष्टभूमि पर स्थित है।

इस सारे उपन्यास के केन्द्र में मृगनयनी है । जो मानसिंह को प्रेरणा प्रदान करती है । मृगनयनी के ग्वालियर में रानी बनकर जाने के बाद से राजा मानसिंह के शासन व्यवस्था में बदलाव आया प्रजा कल्याण की अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया । मृगनयनी के उदार व्यक्तित्व, प्रेम भावना मिलनसार स्वभाव के कारण राजा प्रसन्न रहते, मृगनयनी के विशिष्ट योगदान के कारण राजा के प्रशासन एवं स्वभाव में विशेष परिवर्तन आया । वृन्दावनलाल वर्मा ने अपने उपन्यास मृगनयनी में मृगनयनी को केन्द्र स्थान में रखकर जो मर्यादानुकूल व्यवहार है, धीरज, त्याग, क्षमा, धैर्य, जैसे चरित्र को आधुनिक रूप से प्रस्तुत किया है, जिसमें वर्माजी ने मृगनयनी के व्यक्तित्व के विकास को आधुनिकता के स्वरूप से उल्लेखित किया है।

संदर्भ ग्रंथ
  1. मृगनयनी- वृदावनलाल वर्मा
  2. वृदावनलाल वर्मा का व्यक्तित्व और कृतित्व - डॉ. पद्ममसिंह शर्मा
  3. वृदावनलाल वर्मा के उपन्यासों में नायिका परिकल्पना - डॉ. पी.के. इन्द्राबाई
  4. ऐतिहासिक उपन्यासकार वृदावनलाल वर्मा - डॉ. रामदरश मिश्र
  5. वृदावनलाल वर्मा : व्यक्तित्व एवं कृतित्व - डॉ. प्रेमसिंह के. क्षत्रिय
  6. वृदावनलाल वर्मा के उपन्यासों का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ कृष्णा अवस्थी
  7. ऐतिहासिक उपन्यासकार : वृदावनलाल वर्मा - डॉ. प्रेमसिंह के. क्षत्रिय
डॉ. प्रेमसिंह के. क्षत्रिय, अध्यापक, अहमदाबाद