Included in the UGC-CARE list (Group B Sr. No 172)
अवसाद से जूझते आंदोलित मन की कथा : डार्क नाइट
हिन्दी उपन्यास ने एक लम्बी विकास यात्रा तय की है। ये सही है कि हिन्दी में उपन्यास का चलन अंग्रेज़ी और बांग्ला के बाद शुरू हुआ, लेकिन प्रेमचन्द के आगमन से हिन्दी उपन्यास साहित्य में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ। तत्व और शिल्प की दृष्टि से पहली बार हिन्दी उपन्यास इतने विकसित रूप में दिखाई दिये। इसी युग में आकर उपन्यास में यथार्थ की प्रतिछवि नज़र आयी। जबकि शुरुआती दौर में उपन्यासों में अय्यारी को केंद्र बिन्दु बनाकर लेखन हुआ। अब उपन्यास का विषय परियों की कहानी तक सीमित न होकर, मानव जीवन, उसके सरोकारों और समाज से जुड़ा। जब मनुष्य का जीवन, उसके सरोकार और समाज की उठापटक आदि साहित्य का विषय बनेंगे तो स्वाभाविक है कि मानव जीवन के अंतरंग पलों, उसकी सुखानुभूतियों, उसके मन-विकारों इत्यादि को भी साहित्य में स्थान मिलेगा। जब साहित्य में मानव देह, उसके अंतरंग सम्बन्धों पर कोई लेखक कलम चलाता है तो उस पर प्रायः अश्लीलता का ‘लेबल’ चिपका दिया जाता है।

हिन्दी साहित्य में कुछ रचनाओं पर अश्लील होने के आरोप जब तब लगते रहे हैं। कृष्णा सोबती के साहित्य पर यह आरोप सबसे ज़्यादा लगाया जाता है। ‘मित्रो मरजानी’ पर भी अश्लीलता के आरोप लगे, लेकिन इसे अश्लील कदापि नहीं कहा जा सकता। क्या राजकमल चौधरी कृत उपन्यास ‘मछली मरी हुई’ को अश्लील कहा जा सकता है? क्या मृदुला गर्ग का ‘चितकोबरा’ अश्लील उपन्यास है? क्या मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास ‘कुरू-कुरू स्वाहा’ को अश्लीलता की श्रेणियों में रखा जाना चाहिए? कदापि नहीं। ये हमारी खुद की समझ है कि हम साहित्य को किस नज़रिए से देखते हैं? ये सभी काम साहित्य से संबंधित कृतियाँ हैं। अश्लील साहित्य और काम साहित्य इन दोनों मध्य अंतर होता है। काम का चित्रण भारत में कभी भी अश्लील नहीं माना गया। हमारे प्राचीन मंदिरों के शिल्प इसका उदाहरण है। काम साहित्य को अंग्रेज़ी में ‘इरॉटिका’ कहा जाता है। इरॉटिका होने के लिए उसमें नायक या नायिका की यौन इच्छाओं, कल्पनाओं या फैंटेसियों का वर्णन बहुत ज़रूरी है। इरॉटिका की हिन्दी में समझ बहुत कम है। हिन्दी में रीतिकालीन साहित्य को छोड़कर काम साहित्य या कि इरॉटिका से संबंधित अत्यंत कम रचनाएं उपलब्ध है। और जो उपलब्ध हैं उसपर अश्लीलता का आरोप लगा दिया गया है।

‘डार्क नाइट’ भारत में जन्मे और अब ब्रिटिश नागरिक संदीप नैयर का एक इरॉटिका का उपन्यास है। संदीप जी ने अपने पहले उपन्यास ‘समर सिद्धा’ से ही अपनी लेखन शैली का लोहा मनवा लिया है। ‘डार्क नाइट’ उनका दूसरा उपन्यास है। हम पहले कह चुके हैं कि अश्लील साहित्य और काम साहित्य इन दोनों मध्य अंतर होता है, संदीप नैयर ने इस अंतर को बखूबी समझा है। इस उपन्यास का प्रमुख पात्र है कबीर। कबीर बड़ोदरा की कस्बाई कल्पनाओं से निकलकर लंदन के महानगरीय सपनों तक पहुँचता है। लंदन के उन्मुक्त वातावरण में कबीर की कल्पनाओं को हर वह खुराक मिलता है, जिसके लिए उसका किशोर से युवा होता मन लालायित रहता है। यह पूरा उपन्यास कबीर के द्वंद्व ग्रस्त मन के प्रेम, आकर्षण, रोमांस आदि के आंदोलनों से लबरेज़ हैं।

पंद्रह वर्ष की उम्र में कबीर वडोदरा से लंदन जा पहुँचता है। कबीर का किशोर मन जीवन की उमंगों, इच्छाओं और कई कल्पनाओं से भरा हुआ रहता है। लंदन में वह बिल्कुल नयी दुनिया से रूबरू होता है। एक ऐसी दुनिया जहाँ की जीवन शैली, संस्कृति उसकी ज़िन्दगी से बिल्कुल अलग है। लंदन की संस्कृति और जीवन शैली कबीर की कल्पनाओं को पंख देती है, मगर कच्ची उम्र की उड़ान कबीर संभाल नहीं पाता, और यहाँ से उसके जीवन में भटकाव का दौर शुरू हो जाता है। कभी वह हिकमा के सौंदर्य में प्रेम को तलाश करता है, तो कभी टीना की आँखों में खो जाता है। कभी वह लूसी के आकर्षण में बंध जाता है, तो कभी नेहा से प्रेम करने लगता है। इस उपन्यास में लड़कियों के पात्र बहुत अधिक है। कबीर के चरित्र को स्पष्ट करने के लिए यह आवश्यक भी था। पर हद से ज़्यादा पात्र बोझिल व उबाऊ लगने लगते हैं। रोमानी पलों के वर्णन में लेखक ने एक-दो स्थानों पर अश्लीलता पोत दी है।

डार्क नाइट मनुष्य के मन की ऐसी अवस्था है जब मनुष्य को उसका जीवन निरर्थक लगने लगता है। योग गुरु काम कबीर को डार्क नाइट से निकलने में मदद करते हैं। यही वह बिंदु है जहाँ लेखक इरॉटिका को अध्यात्म से जोड़ते हैं।

सोलहवीं शताब्दी के स्पेनिश कवि सेंट जॉन ऑफ़ द क्रॉस की एक कविता है ‘डार्क नाइट ऑफ़ द सोल’ । इस कविता से ही प्रेरणा प्राप्त कर संदीप जी ने इस उपन्यास का शीर्षक ‘डार्क नाइट’ निर्धारित किया, और उपन्यास की पृष्ठभूमि तैयार की । इस कविता में कवि सेंट जॉन ऑफ़ द क्रॉस ने बताया है कि डार्क नाइट मन के अवसाद की वह अवस्था है जिसमें हम हताश होकर जीवन पर प्रश्नचिह्न उठाते हैं कि जीवन क्यों है? जीवन जैसा है वैसा क्यों है? वह बड़ा गहरा अवसाद होता है। सेंट का कहना है कि उसी अवसाद में मनुष्य की चेतना एक विस्तार पाती है, और उत्तर मिलता है कि जीवन जैसा है वैसा क्यों है? न कि जैसा मनुष्य चाहता है वैसा है। परन्तु संदीप नैयर के उपन्यास ‘डार्क नाइट’ में सेंट की कविता की भाँति ऐसी किसी चेतना का विकास दृष्टिगत नहीं होता। यह इस उपन्यास की सबसे बड़ी कमज़ोरी है।

इस उपन्यास में प्रिया और माया दोनों प्रतीकात्मक पात्र है। माया वह प्रतीक है जो मनुष्य की को भटकाती है। कबीर के डार्क नाइट से निकलने के बाद उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन आता है पहले वह प्रिया से मिलता है और प्रिया के रूप में उसे एक प्रेमिका मिलती है, जिसमें वह प्रेम की पूर्णता को देखता है। परंतु कहीं ना कहीं उसकी डार्क नाइट से पूर्व की कल्पनाएं, योन ग्रंथियाँ उस पर हावी हो जाती है और वह फिर माया से मिलता है । जब वह माया से मिलता है तो उसे अपनी वे सारी कल्पनाएं माया के साथ पूरी होती दिखाई देती है, और वह माया के संमोहन में भटक जाता है।

उपन्यास चरम सीमा पर पहुँच कर कबीर बिना किसी कारण माया को छोड़ कर प्रिया के पास वापस चला जाता है। उपन्यास की कथा अपने अंतिम चरण में पहुँचकर अपना वेग खो देती है और डगमगाने लगती है।

यह पूरी तरह से आकर्षण से वशीभूत होकर ठहराव की तलाश करते युवा मन के प्रेम में आए उतार-चढ़ाव की कथा है। कबीर की ज़्यादातर ग्रंथियाँ यौन संबंधी है। उपन्यास भी इन्हीं सब चीज़ों के आस-पास बुना गया है। एक आम भारतीय पाठक इस उपन्यास के यूरोप वाले ‘कल्चर’ की कल्पना से शायद ही सम्बद्ध हो पाए। लंदन में रह रही लड़कियों के व्यवहार का निरूपण करने में उपन्यासकार विशेष सफल नहीं हुए हैं। हम खुद को उस पृष्ठभूमि से सम्बद्ध नहीं पाते।

अंग्रेज़ी में हुए संवादों को हिन्दी में ढालकर बहुत अधिक लिखा गया है। ऐसा उन संवादों को वास्तविक दर्शाने के लिए किया गया है। उपन्यास पढ़ते-पढ़ते ये संवाद कथा के प्रवाह को खंडित करते हैं, और कहीं-कहीं सिर दर्द भी बन जाते हैं ।

‘डार्क नाइट’ की लोकप्रियता के बाद अब लेखक ‘डार्क नाइट 2’ पर काम कर रहे हैं। यौन ग्रंथियों पर लिखना दिमाग़ खपा देने वाला एवं हिम्मत का काम है। हिन्दी में यह विषय बिल्कुल नया है। अतः संदीप जी बधाई के पात्र हैं, पर वे इस विषय को उचित न्याय नहीं दे पाए।
डॉ.संजय चावड़ा, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, गवर्नमेंट आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज : तालाला (गुजरात) sanjay10520@gmail.com