Included in the UGC-CARE list (Group B Sr. No 172)
Special Issue on Feminism
स्त्री नाटककार ममता मेहरोत्रा : ‘महाभारत की माधवी’ में स्त्री वेदना
इक्कीसवीं सदी के नाटकों में स्त्री की समस्यायों या उनकी समाज में क्या स्थिति है, इन सारे तथ्यों को बड़ी ही बारीकियों से दर्शाया जा रहा है। युग बदला, समाज बदला और स्त्रियों के भी बाहरी आवरण बदले परन्तु औरतों के प्रति समाज की, कुछ पुरुष वर्ग की मानसिकता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। इसी कारण साहित्यिक विधाओं में अभी भी इस तरह के विषय लिखे जा रहें हैं और इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है। इसपर शोध कार्य भी हो रहें हैं। अनेक नाटककार स्त्री की समस्याओं को नाटकों के माध्यम से उजागर कर रहें है। इसी सफ़र में एक प्रगतिशील लेखिका ममता मेहरोत्रा भी हैं।

ममता मेहरोत्रा :-

ममता मेहरोत्रा का जन्म उत्तर प्रदेश, लखनऊ में 6 अक्तूबर 1969 ई. को हुआ। इन्होंने अपनी शिक्षा एम. एस. सी. जीव विज्ञान, लखनऊ विश्वविद्यालय से पूर्ण की। इनकी शिक्षा और रूचि बिल्कुल भिन्न है। इन्होंने लेखनी के केंद्र में महिला अधिकार और क़ानूनी सुरक्षा को रखा है, साथ ही साहित्यिक गतिविधियों पर भी कलम चलाई है। वे डी. ए. वी. पब्लिक स्कूल, पटना, बिहार में प्रधान शासकीय अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थी। वर्त्तमान में वह बिशप स्कॉट बॉयज स्कूल में प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत है। साथ ही वह अन्य गतिविधियों से भी जुड़ी रहती हैं। सूचना अधिकार पर केन्द्रित मासिक पत्रिका ‘खबर पालिका’ और द्वैमासिक पत्रिका ‘सामयिक परिवेश’ की भी सम्पादक हैं। सन् 2002 में ‘सूर्य महिला कोषांग’ में सलाहकार तथा सह-संयोजक के रूप में कार्यरत थी। सूर्य महिला कोषांग’ की स्थापना 8 अक्टूबर 2002 गया, बिहार में तत्कालीन जिला पदाधिकारी ब्रजेश मेहरोत्रा द्वारा हुई और यह भारत का प्रथम महिला हेल्पलाईन है। जहाँ ममता मेहरोत्रा महिला अधिकार के लिए सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सेवा दे रहीं हैं। मानसिक रूप से मंदबुद्धि और बधिर लोगों को प्रशिक्षित भी करती हैं, जो ‘बिहार शिक्षण योजना’ संस्था द्वारा चलाई जाती है। यह संस्था बिहार सरकार और यूनिसेफ के द्वारा संचालित की जाती है। समाजसेविका के रूप में अपने अथक प्रयास से समाज की सेवा में जुड़ी हुई हैं। वे संस्था ‘बिहार इंस्टीटयुट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन एंड रूरल डेवलपमेंट’ से जुड़कर जेंडर से सम्बंधित समस्यायों और मानवाधिकारों को बताने और सुलझाने के लिए प्रयासरत है। साथ ही बोर्ड मेम्बर के रूप में ‘जन शिक्षण संस्थान’ गया, बिहार से भी जुड़ी हुई है। इन सारे भागीदारी के आलावा अनेक प्रकार के कार्यक्रम और संस्थाओं में कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत है।

दो मनुष्यों के संबंध जब मजबूत होते हैं तब रिश्ते काफी दूर तक जाते हैं। हमारे जीवन के अस्तित्व को बनाने और संभालने में रिश्तो के बंधन की भूमिका मुख्य होती है। मनुष्य जन्म लेने से पहले गर्भ काल से ही संघर्षरत होता है। उस संघर्ष के पथ पर सबसे प्रथम सहभागी माँ होती है। माँ का स्पर्श तो शिशु गर्भ से ही पहचाना शुरू कर देता है। इसीलिए धरती पर वह सर्वप्रथम माँ के स्पर्श को सुरक्षित मानता है। हमारे माता-पिता हर कदम इस क्रूर दुनिया से हमे सुरक्षित रखने के साथ-साथ सुरक्षा और आश्वासन देते हैं और पग-पग पर संभालते हैं। अगले पड़ाव में हमारे शिक्षक आते हैं जो हमें जीवन के कई मायने को सिखाते हैं। अज्ञान के भय को दूर भगाकर ज्ञान की निडरता को पिलाते हैं। इस प्रकार सभी स्तरों पर संबंध बढ़ाना बेहतर व्यक्तित्व को बनने का महत्वपूर्ण हिस्सा है। संबंध जीवन में बहुत ही आवश्यक है। इसी संबंध और बंधन के आधार पर मेरे सफर में एक ज्ञानमार्गी लेखिका ममता मेहरोत्रा जी से मेरा संबंध जुड़ा। जो समाज के प्रति, महिलाओं और शिक्षा के प्रति हमेशा जागरूक रहती हैं और सभी को जागरुक करती हैं। साथ ही स्त्री विशेषाधिकार के लिए भी संघर्षरत रहती है।

मामता मेहरोत्रा अपने शैक्षिण जीवन के समय से ही समाज में महिलाओं के स्थिति के प्रति जागरूक और उनके जीवन के प्रति सुधार के लिए संघर्षरत है। महिलाओं के प्रति हो रहे जगह-जगह हिंसा चाहे वह घर में हो या बाहर उनके विरोध में काम करती रहती हैं। उन्हें रुचि और जीविका दोनों रूपों में पढ़ना और पढ़ाना पसंद है। इन्होंने हमेशा लड़कियों के शिक्षा पर जोर दिया साथ ही समाज में औरतों और बच्चों के समस्यायों के बारे में जागरूक बनी रही। इन्हें सामाजिक कार्यों और साहित्यिक कार्यों के लिए अनके सम्मान और उपाधि से नवाजा गया। अभिषेक प्रकाशन, नई दिल्ली के द्वारा 13 जनवरी 2018 को इन्हें ‘राष्ट्रीय साहित्य भूषण’ की उपाधि से नवाजा गया। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 8 मार्च 2018 को ‘कंचन रत्न’ सम्मान से सम्मानित किया गया। इनको काव्य पठन के लिए ‘सामयिक परिवेश साहित्य पटल’ द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में 5 मार्च 2020 को प्रशस्ति पत्र प्राप्त हुआ। व्यक्तिगत रूप से सेवा प्रदान करने के साथ उन्होंने अनेक प्रकार की रचनाओं में भी कलम चलाई। साहित्य में उनकी रचनाएँ निम्नतः है।

साहित्यिक रचनाएँ :-
  1. रिश्तों की नींव (कहानी)
  2. अपना घर (कहानी)
  3. सफर (कहानी)
  4. माटी का घर (कहानी)
  5. धुआँ-धुआँ है जिन्दगी (कहानी)
  6. विश्वासघात तथा अन्य कहानियाँ
  7. दोराहा तथा अन्य कहानियाँ
  8. टुकड़ों-टुकड़ों में औरत (नाट्य रूपांतरण)
  9. ‘महाभारत की माधवी’ (नाटक)
  10. जय प्रकाश तुम लौट जाओ (जीवन चरित्र)
लैंगिक समानता एवं अन्य विषय :-
  1. महिला अधिकार और मानव अधिकार
  2. We Women
  3. Gender inequality in India
  4. Crimes Against women of India
  5. Relationship & other stories
  6. School Time Jokes
  7. शिक्षा का अधिकार (RTE Act)
  8. टाइम मैनेजमेंट
  9. शिक्षा के साथ प्रयोग
इनके नाटक और नाट्य रूपांतरण अनेक मंचों पर मंचित भी हुए है, जैसे ‘संगीत नाटक अकादेमी’, नई दिल्ली के सौजन्य से 18 मार्च 2018 को ‘काल जागरण’, पटना में और 24 मार्च 2018 को कोलकत्ता ‘मल्टीलिंगुयल थियेटर फेस्टिवल’, पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकत्ता में ‘महाभारत की माधवी’ नाटक का मंचन किया गया। इसके साथ ही इनके अनेक नाटकों का मंचन यूटुब पर भी है। ममता मेहरोत्रा बहुमुखी प्रतिभा की लेखिका है। इन्होंने साहित्य लेखन के साथ-साथ महिला कानून अधिकार के लिए भी लेखन किया है। औरतों की विभिन्न प्रकार की समस्याओं को बताते हुए कानूनी अधिकार को भी अपनी पुस्तकों में बताया है। इसके अलावा कक्षा एक से नौ तक के पाठ्यक्रमों के लिए भी इन्होंने पुस्तकें लिखी हैं। साथ ही मानवाधिकारों के लिए ‘गणादेश’ में भी लिखती है। इनकी पुस्तक ‘शिक्षा का अधिकार’ जोकि ‘RTE Act’ पर लिखी गई है, काफी प्रसिद्ध है। इस पुस्तक को राज्य सरकार ने क्रय किया है। इनके द्वारा किए गए शोध कार्य आठ भाषाओं में प्रकाशित हुए है। इनके लेखन पर कुछ संक्षिप्त डॉक्युमेंट्री फिल्म भी बनी है। बीजिंग घोषणा-पत्र, वियना सम्मलेन 1993, भारतीय विधि आयोग की इक्कीसवीं रिपोर्ट में महिला अधिकारों के प्रति सामाजिक-वैधानिक जागरूकता को मामता मेहरोत्रा ने अपनी पुस्तकों द्वारा विश्व पटल पर रखा है। आज भी अपने सभी कार्यों के साथ वे आगे बढ़ रही हैं।

‘महाभारत की माधवी’ नाटक की कथावस्तु :-

‘महाभारत की माधवी’ पौराणिक कथा महाभारत पर आधारित नाटक है। इस नाटक की प्रमुख पात्र ‘माधवी’ पर आज कितनी ही रचनाएं लिखी गई है। साहित्य के अंतर्गत स्त्री पात्र द्वारा स्त्री विमर्श के सबल और निर्बल दोनों पक्ष उभरकर सामने आते हैं। स्त्री विमर्श के अंतर्गत भारतीय नारी की स्थिति को बहुत ही बारीकियों से दर्शाया गया है। ‘माधवी’ पात्र उस काल की जीवनास्थिति को बयान करती है जहां औरतों की स्थिति बहुत ही दयनीय एवं सोचनीय थी। यह पात्र महाभारत के उस समय को दर्शाता है जहां नारी केवल भोग एवं विलास वस्तु समझी जाती थी। इस समय स्त्री की दशा क्या थी यह बताते हुए माधवी की कथा सार्थक सिद्ध होती है। इस कथा की ओर आकर्षित होने के बारे में रचनाकार कहती है कि
“महाभारत के अध्ययन के दौरान जब मैं इस पात्र से रूबरू हुई तो लगा कि नारी सदियों से सिर्फ पीड़ा को जीती आ रही है। उसका अस्तित्व एक सामाजिक मर्यादा के आवरण तले कैद है और वह फड़फड़ा कर स्वतंत्र अस्तित्व को तलाशना चाहती है। नारी तब भी अपने जीवन रूपी रण में अकेली थी और आज भी है। काल बदलें, युग परिवर्तित हुए, पर नारी अपने अस्तित्व को तलाशते स्वयं ही एक कहानी में परिवर्तित हो गई। हर पुराण और प्राचीन ग्रंथ कहीं-न-कहीं नारी के संघर्ष की कहानी ही छुपाए हुए है।”[1]
महाभारत के उद्योग पर्व में माधवी के बारे में कथास्वरूप विस्तार से बताया गया है। माधवी राजा ययाति की कन्या थी, जिसे दो वरदान प्राप्त थे। प्रथम वरदान के अनुसार उसे चार यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी और द्वितीय वरदान के अनुसार पुत्र जन्म के पश्चात उसे चीर यौवन की प्राप्ति होगी। इन्हीं दोनों वरदान के इर्द-गिर्द ‘माधवी’ की कहानी चलती है। यह कहानी स्त्री के साक्षात सत्य को दर्शाती है। परंतु उसकी दयनीय दशा का कारण भी यही है।

यह नाटक कुल 22 दृश्यों में विभक्त है जिसमें माधवी के जीवन संघर्ष के साथ कई सारी सामाजिक समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया गया है। नाटक की शुरुआत दो सूत्रधार मानव और मानवी, पृथ्वी के सर्वप्रथम स्त्री और पुरुष के द्वारा होती है। मानवी जैसे ही नाटक की शुरुआत करना चाहती है मानव उसे रोक देता है।
“मानवी : ओहो! मैंने तो अभी शुरू ही किया है, मानव! तुम पुरुषों के साथ यही समस्या है। तुम हमेशा हर कदम पर स्त्रियों का पैर खींचते हो। तुम महिलाओं को सोचने और बोलने ही नहीं देते।”[2]
यहाँ लेखिका दर्शाती है कि स्त्री जब भी अभिव्यक्ति की कामना करती है वहाँ वर्चस्ववादी वर्ग पूर्ण विराम लगा देता है। यह नाटक ‘उत्तर-प्रश्न’ की रानी यशोवती की समस्या और लाखों स्त्रियों की समस्या को अभिव्यक्ति देता है। इस नाटक में श्रीमद् के विचारों को माधवी पाठकों के सामने रखती है। जब धरती का उद्भव हुआ यानि मनुष्य का उद्भव तब स्त्रियाँ अच्छी, सुख और समृद्धि के साथ जीवन यापन करती थी। किन्तु आज वे चारों ओर कष्ट में है। भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न आदि जैसी घटनाओं का शिकार बन रही है और नाटक की सूत्रधार मानवी उसकी सटीक झलक इस दृश्य में दिखाती है। भ्रूण हत्या को लेकर वह कहती है,
“मानवी : ….. क्या उसे जीने का अधिकार नहीं था? उसे साँस भी नहीं लेने दी गई। उससे उसकी साँस तक छीन ली गई। उसका अपने जीवन और अपनी सांस पर कोई अधिकार नहीं था। उसकी हत्या कर दी गई मानव, शैशव काल में ही उसे मार दिया गया। मानव, क्या हमने ऐसी सृष्टि की कल्पना की थी?”[3]
नाटक के दूसरे दृश्य की शुरुआत एक वन में होती है जहां गायत्री मंत्र का पाठ चल रहा है। ऋषि विश्वामित्र हवन कर रहे हैं तभी मधुर ध्वनि सुनाई देती है। एक स्त्री संगीत के ताल पर नृत्य कर रही होती है। जिस कारण विचलित होकर विश्वामित्र का ध्यान भंग होता है। वे क्रोधित होकर उस स्त्री को श्राप देते हैं। नाटककार ने ऐसे छोटे-छोटे दृश्यों के माध्यम से स्त्री जीवन में घटित समस्याओं को बड़ी ही संजीदगी से उकेरा है। तीसरे दृश्य के अंतर्गत नाटककार ने बलात्कार जैसे घिनौने कृत्य को सामाजिक समस्या के माध्यम से दर्शाया है।
“मानवी, नदी के तट पर गीत गा रही है। मानव, घास कट रहा है। आचनक उन्हें किसी की चीख सुनाई देती है। ‘बचाओ, बचाओ!’ वह लड़की पीड़ा में है। वह झाड़ियों से दौड़कर बाहर आती है और अपने आप को ढकने का प्रयास करती है। एक पुरुष उसका पीछा कर रहा है। मानव और मानवी उस पुरुष के सामने खड़े हो जाते हैं। पुरुष हिचकिचाता है, लेकिन अपने भेद खुलते देख पलटता है और भाग जाता है। ‘रो मत मेरी बच्ची, मत रो, मैं हूँ न तुम्हारे पास।’.....
मानव : चलो इसे इसके पिता के घर छोड़ आएँ। लड़की, तुम्हारा क्या नाम है?
लड़की : मेरा नाम माधवी है और मेरी मृत्यु निश्चित है, क्योंकि वे मुझे स्वीकार नहीं करेंगे। वे मुझे मार डालेंगे या मैं शर्म से मर जाऊँगी। यह समाज मुझे जीने नहीं देगा कृपया कर मुझे मरने दे, नहीं तो मैं वन में जाकर तपस्या करने बैठ जाऊँगी। मैं अपनी सांसारिक इच्छाओं का त्याग कर दूँगी।” [4]
इस दृश्य में जो हादसा लड़की के साथ होता है वही हादसा नाटक में माधवी के साथ बार-बार होता है। वह अपने पिता की खुशी के लिए यह दु:ख उठाती है।

चौथे दृश्य की शुरुआत में माधवी अपनी सखी सुरुचि के साथ खेल रही है तभी राजा ययाति और राजपुरोहित का प्रवेश होता है। राजपुरोहित माधवी को प्राप्त वरदान के बारे में राजा यायाती को बताते हैं। वहीं पर दूसरे दृश्य में विश्वामित्र अपने शिष्यों के साथ बैठे हैं जहाँ एक शिष्य गालव शिक्षा पूरी करने के बदले उन्हें गुरु दक्षिणा देना चाहता है। विश्वामित्र मना करते हैं किन्तु गालव जिद करता है। अंत में वे गुरु दक्षिणा के रूप में आठ सौ सफेद घोड़े जिनका एक कान काला हो मांगते हैं। गालव अपने मित्र गरुड के साथ ऐसे आठ सौ घोड़ो की तलाश में निकलता है किन्तु बहुत भटकने के बाद भी उसे घोड़े नहीं मिलते। अंत में वह हताश होकर राजा ययाति के पास जाता है और अपनी समस्या बताता है। ययाति उसकी समस्या का समाधान नहीं कर पाते परंतु गालव एक ब्राह्मण था, वह ब्राह्मण को खाली हाथ लौटना नहीं चाहते। तब वे अपनी पुत्री माधवी से मदद माँगते हैं।

राजा ययाति गालव को अपनी पुत्री को प्राप्त वरदान के बारे में बताकर उसे सौंप देता है। जिसे गालव केवल दान के रूप में स्वीकार करता है। पिता के आदेश को माधवी कर्तव्य समझ कार्य करने हेतु तैयार हो जाती है। आदिकाल की राजमती की तरह ही वह भी अपने स्त्री जन्म को कोसने लगती है। माधवी को लेकर गालव सर्वप्रथम राजा हर्यश्व के दरबार पहुंचता है। जहाँ गालव दौ सौ घोड़ों के बदले माधवी का सौदा करता है। वह एक वर्ष के लिए माधवी को राजा के पास छोड़ देता है। हर्यश्व के द्वारा माधवी को एक पुत्र की प्राप्ति होती है। हर्यश्व राजा न ही माधवी का पति है और न ही प्रेमी है इसलिए वह उसे वचन देता है कि जिस पुत्र को तुम जन्म दोगी वह तुम्हारे नाम से जाना जाएगा।
“हर्यश्व : मैं नहीं जनता, किन्तु मैं इस सत्य को जनता हूँ। मैं न तो तुम्हारा वर हूँ, न ही प्रेमी। इनमें से कोई भी नहीं, कोई भी नहीं हूँ, किन्तु एक बात जनता हूँ। मेरी निगाह जिस समय तुम पर पड़ी, मैं सिर्फ तुम्हारे साथ रहना चाहता था और किसी के भी साथ नहीं। तुम्हारी सुंदरता इतनी अद्भुत है कि इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि मैं तुम्हें विजय करने आयाँ हूँ। ऐसा इस कारण, क्योंकि अपनी ही इच्छा से, मैं अपने आप को पूरी तरह तुम्हें समर्पित करता हूँ और मैं कुछ भी याद रखना नहीं चाहता हूँ। मैं और तुम बस एक हैं। मेरे बच्चे की माता बन जाओ। मैं वह स्थान तुम्हें देता हूँ।” [5]
राजा हर्यश्व से माधवी को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है। वरदान के अनुसार माधवी चीर यौवन कौमार्य धरण कर लेती है। एक वर्ष के बाद गालव को राजा हर्यश्व से दो सौ घोड़ो की प्राप्ति होती है और वह माधवी को वहां से ले जाता है। वह उसे काशी के राजा दिवोदास के सामने प्रस्तुत करता है। जहाँ माधवी को अत्यंत वासनात्मक दृष्टि से देखा जाता है।

राजा दिवोदास से भी माधवी को एक पुत्र की प्राप्ति होती है। अपने वचन के अनुसार गालव एक वर्ष बाद दो सौ घोड़े लेकर प्रस्थान कर राजा भोज के राज्य आता हैं। राजा उसीनर एक संतान की इच्छा लेकर माधवी को अपने पास रखते हैं। जहाँ उसे फिर पुत्र की प्राप्ति होती है और वरदान के अनुसार फिर वह कौमार्य धारण करती है। गालव को अपने दो सौ घोड़े मिल जाते हैं। वह कुल छः सौ घोड़े और माधवी को लेकर विश्वामित्र के पास पहुंचता है। वहाँ पर भी विश्वामित्र माधवी के सौंदर्य पर मोहित हो जाते हैं। विश्वामित्र के अनुसार माधवी को सर्वप्रथम उनके पास लाना चाहिए था, जिससे उन्हें चार दिव्य पुत्रों की प्राप्ति होती। वे गालव पर क्रोधित हो जाते हैं। माधवी के चीर यौवन और कौमार्य को देखकर विश्वामित्र उससे पुत्र प्राप्ति की लालसा को दर्शाता है। उससे भी माधवी को एक पुत्र की प्राप्ति होती है। एक वर्ष पूर्ण होने के बाद गालव उसे लेने आता है और उसे कहता है कि ‘तुम अब स्वतंत्र हो’।

प्रत्येक काल में पुरुष स्त्री पर अपना अधिकार जमता है, हर क्षेत्र में उसे छूट देने की वाह-वाही करता है। स्त्री हमेशा उसके दु:खों को शांत करती है और स्वयं को एक कल्पना में जीना सिखाती है। गालव जब माधवी को जाने के लिए कहता है तब वह उससे अनेक सवाल पूछती है। जिसमें वह मनुविचार पर प्रश्नचिन्ह लगती है। वह कहती है,
“माधवी : तुम एक पुरुष हो और ऋण चुकाना तुम्हारा अभियान था। मैं तो उसमें बस एक कठपुतली मात्र थी। क्या महिलाओं के उनके जीवन में उद्देश्य नहीं होते, क्या वे बस अपने पिता, भाई, पति और पुत्र के कार्यों को पूरा करने के लिए जन्म लेती है, क्या वे मनुष्य नहीं हैं?” [6]
माधवी मन ही मन गालव को चाहने लगती है, परंतु विश्वामित्र से पुत्र प्राप्ति बाद गालव माधवी को गुरुमाता का दर्जा देता है और उसे स्त्रियों की कर्तव्य परायणता को भी याद दिलाता है। माधवी के पिता ययाति उसके स्वयंवर की तैयारी करते हैं जहाँ उसके पुत्र के सभी पिता उपस्थित रहते हैं। उनसे वह एक प्रश्न पूछती है।
“माधवी : आज भी मैं आपसे वहीं प्रश्न पूछती हूँ। आप यहाँ एक प्रेमी के रूप में आए हैं या मेरे प्रति वासना के कारण?” [7]
आधुनिक माधवी बनकर वह सभी दरबारियों से पूछ रही है कि क्या आज भी स्त्री लैंगिकता के आधार पर ही जानी जाएगी?
“माधवी : आप सब इस दरबार में मुझे मेरे व्यक्तित्व के कारण प्रेम से जीतने आए हैं या मेरी लैंगिकता के कारण? उत्तर दीजिए मुझे! चारों दिशाओं के राजाओं! क्या स्त्री उपभोग कर फेंक दिए जाने की वस्तु मात्र है या पुरुष और स्त्री के संबंध में कोई प्रतिबद्धता भी होती है?” [8]
माधवी बिना स्वयंवर किये, एक तपस्विनी के रूप में जंगल चली जाती है। जहां वह भोग की वस्तु नहीं बल्कि आत्मसंतुष्टि के रूप में जीवन जीती है। ययाति की कहानी को नाटककार आगे बढ़ाते हुए ययाति के द्वारा पुत्री का महिमामंडन करते हैं। उनके अनुसार पुत्र ही नहीं बल्कि पुत्री भी सभी क्षेत्र में आगे हैं।
“..... मनुष्य चाहता है कि उसकी संतान प्रतापशाली हो। मैं तुम्हारी जैसी पुत्री को पाकर प्रसन्न और धन्य हुआ। हम पुरुष मूर्ख हैं जो समझते हैं कि केवल पुत्र ही पिता का नाम आगे ले जा सकते हैं। मैं धन्य हूँ, जो मुझे तुम्हारी जैसी पुत्री मिली।” [9]
इस नाटक के माध्यम से समाज के यथार्थ को बड़ी बारीकियों से नाटककार ने पाठकों के सामने रखा है। भ्रूण हत्या हो या बलात्कार या फिर घरेलू हिंसा सभी को दर्शाने का प्रयास किया है। समाज में एक स्त्री, एक बच्ची भ्रूण को क्यों मारना चाहती है? इसे दर्शाने का प्रयास संवादों के माध्यम से किया गया है। रचनाकार यह दिखाना चाहती है कि एक बच्ची धरती पर आती है तो वह किस रूप में विकसित होगी। इस संदर्भ में वे लिखती है,
“...यह जीकर एक अतिथि, एक लेखिका, एक महान कवयित्री, महान संगीतकार, एक अच्छी मनुष्य बनेगी। वह जैसा चाहेगी, वैसा जीवन जिएगी। वह जीवन की कविता लिखेगी और जीवन के गीत गाएगी। वह एक अच्छी इंसान बनेगी। वह माधवी कहलाएगी।” [10]
प्रसिद्ध नाटककार मोहन राकेश ने अपने नाटक ‘आधे-अधूरे’ में जिस प्रकार पुरुष पात्र के विभिन्न रूपों को दर्शाया है उसी प्रकार ममता मेहरोत्रा ने ‘माधवी’ जैसे पात्र को लेकर स्त्री की वेदना और समस्या को दर्शाने का प्रयास किया है। उनका यह प्रयास स्त्री जीवन की समस्याओं को यथार्थ अभिव्यक्ति प्रदान करने में सफल रहा है। इस नाटक में ज्यों-ज्यों समस्याएं बताई गई है उन सभी समस्याओं से माधवी जुड़ी हुई है।

नाटक के शुरुआत से लेकर अंत तक समस्याओं से उलझी हुई जो माधवी प्रस्तुत की गई है वह असल में महाभारत के यति की पुत्री माधवी है। माधवी के माध्यम से नाटककार ने महिलाओं की समस्याओं पर प्रकाश डाला है। कोई भी युग, समय, काल अथवा परिस्थिति हो नारियों की स्थिति समान ही बनी रहती है। स्त्री को उसके कर्त्तव्य को याद दिला-दिला कर उसके सजीव रुपी जीवन को अमूर्त की स्थिति में परिवर्तित कर देते हैं। पौराणिक, ऐतिहासिक और आधुनिक समय में मनुष्य द्वारा एक आज्ञा मानने वाले रोबोट जैसे स्त्री की गति को दिखाया गया है। नाटक में समाज का स्त्री के साथ तालमेल दिखाते हुए औरत की परिस्थिति को जानने का प्रयास किया गया है। आधुनिकता के संदर्भ में तस्लीमा नसरीन कहती है
“उन औरत का विश्वास है कि जो औरतें पढ़ी-लिखी और कॉलेज-विद्यालय के डिग्रीयाफ़्ता दो-चार पुरुष मित्रों से हेल-मेल रखती है, वे लोग आजादी के शीर्ष पर पहुंच गई हैं। वे अपने हाथ-पैरों पर पड़ी बेड़ियों पर नजर नहीं डालतीं। वे यह नहीं समझती कि पुरुषतांत्रिक समाज में जैसे पिछले जमाने की औरतें यौन-सामग्री और बच्चे पैदा करने वाली मशीन थी, आज भी वही की वही हैं। जिन औरतों को आधुनिकता की हवा लग चुकी है वे भी मर्दों की भोग की भूख बल्कि तीन गुना ज्यादा बढ़ा देती हैं। इस शहर में आजाद औरतें सिंदूर धारण करती हैं और पति की पदवी ग्रहण करके, खुद ही जानकारी देती हैं कि वे मर्द की व्यक्तिगत संपत्ति हैं। उनके पास पति नामक जो चीज है वह उनकी सुरक्षा है। वह सुरक्षा अगर भड़क जाए तो उस पर सामूहिक विपदा बरसने लगती है जो सुरक्षा अगर ढह जाए तो वह खुद ही ढह जाती है।” [11]
तस्लीमा नसरीन जी का यह कथन माधवी के जीवन से जुड़ता हुआ नज़र आता है। उसको प्राप्त वरदान यौन-सामग्री और बच्चा उत्पन्न करने की मशीन ही तो बनाता है। उसकी कहानी इन्हीं तथ्यों को सिद्ध करती है। वही इस नाटक का दूसरा पहलू यह भी है कि उस काल में स्त्री-पुरुष संबंध में खुलापन था। आधुनिक काल के परिप्रेक्ष्य स्वरुप माधवी जो निर्णय अपने लिए लेती है, उसे वह पूरा करती है। परंतु आज अगर कोई स्त्री निर्णय लेती है तो उस पर एसिड डाल दिया जाता है। बलात्कार करके उसे क्रूरता से मार दिया जाता है, जला दिया जाता है। स्त्री के साथ जुड़ी इन्हीं समस्याओं की ओर इशारा करती है ‘महाभारत की माधवी’।

‘महाभारत की माधवी’ नाटक की समस्या :-

‘महाभारत की माधवी’ नाटक में पितृसत्तात्मक समाज में पुत्र की अभिलाषा की लालसा, स्त्री अस्तित्व एवं अस्मिता की पहचान, भ्रूण हत्या, बलात्कार और औरतों को भोग की वस्तु समझना आदि समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया गया है। माधवी की कहानी जानकार ऐसा लगता है कि उस समय भी अधिकतर औरतों की पहचान और अस्मिता शुन्य थी। यहीं पहचान और अस्मिता माधवी नाटक के अंत में हासिल करती है। दक्षिणा में किसी पशु-पक्षी, निर्जीव वस्तु, तत्त्व, धन आदि को दिया जाता है परन्तु इस नाटक में गुरु दक्षिणा स्वरूप पुत्री को दान किया जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि उस समय और आज भी स्त्रियों को अपने उपयोग या भोग विलास के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। नाटक में स्त्री के आधिकारों को भी दिखाया गया है, जहाँ माधवी की संतान उसके नाम से जानी जाती। जैसे माधवी के चार पुत्र ‘माधवी पुत्र’ कहलाते हैं।
“..... एक स्थान, जो इस विश्व और उपर स्वर्ग में भी इतना उच्च है और मैं तुम से एक वादा करता हूँ कि तुम से मुझे जो पुत्र प्राप्त होगा, वह इस संसार में मधावी का पुत्र कहलाएगा। मैं अपना नाम और सारा साम्राज्य उसे सौप दूंगा, क्योंकि वह मुझे मोक्ष दिलाएगा तथा मुझे ऊपर स्वर्ग के साम्राज्य तक ले जाएगा।
मेरी प्रिय माधवी, मैं तुम्हें यह वचन देता हूँ। हे सुंदरी! मुझसे पैदा होनेवाला हमारा पुत्र माधवी का पुत्र कहलाएगा।... माधवी अपनी आँखें बंद कर लेती है और अपने आप को अपने भाग्य के प्रति समर्पित कर देती है, क्योंकि एक शुल्क के बदले उसे राजा को बेच दिया गया है।” [12]
सामाजिक धरना में पुत्र होना मोक्ष की प्राप्ति के बराबर फल माना गया है। माधवी नाटक पौराणिक और ऐतिहासिक धरातल से निकलकर आधुनिकता के जीवंतता को दर्शाता है। जब वह स्वतंत्र है तो उसके पुत्रों की पहचान उसके नाम से होती है यह बात तत्कालीन समय के यथार्थ को दर्शाती है। किन्तु जब वह ययाति की पुत्री होने के साथ अलग-अलग परिस्थितियों में माधवी बनती है तो यह स्थिति आज के आधुनिकता को दर्शाती है।

माधवी को दो वरदान मिले पहला कि वह चार यशस्वी पुत्रों को जन्म देगी। तो दूसरे वरदान की आवश्यकता क्यों है? कि वह चीर यौवन रहेगी! इसलिए कि चार पुत्रों को जन्म देने के बाद भी वह आकर्षक और सुंदर बनी रहे, तभी तो पुरुष वर्ग उसकी ओर आकर्षित हो पायेगा। पाठक जब नाटक को समझने की चेष्टा करता है तब इस तरह के कई सवाल सामने उभरते हैं। माधवी को प्राप्त यह वरदान उसके अस्तित्व को सुरक्षित नहीं करता और दूसरा पहलू यह है कि संतान उत्पन्न करना और वह भी पुत्र संतान जो पितृसत्तात्मक समाज की सोच को दर्शाता है। उसकी दशा का कारण बनता है।
“मानवी : ..... सच में यह पुरुषों की दुनिया है। उसके पिता पर एक ब्राह्मण ऋण था, जिसे चुकाने के लिए उसके पिता ने उसे बेच दिया। उसे एक राजा को बेच दिया गया, क्योंकि गालव को अपने गुरु का ऋण चुकाना था। माधवी ने राजा को उनका पुत्र और उत्तराधिकारी दिया। बदले में उसे क्या मिला, मुझे उत्तर दो? मानव, तुम पुरुष जाति के प्रतिनिधि हो। क्या महिलाओं को जीवन जीने का अधिकार नहीं है, चुनाव करने का अधिकार नहीं है? न पिता, न प्रेमी, नहीं गुरु, उनके बदले, वह अपना पुत्र खो देती है। हे मानव! अभिशप्त तो वह है धरती मां, जिसका कर्तव्य बस देना है और मांगना कुछ भी नहीं। गालव के साथ भेजने से पहले उसके पिता ने एक बार भी उसकी सहमति नहीं ली, नहीं गालव उसे स्वीकार करने में हिचकिचाया और बिना उसकी अनुमति के ही उसका सौदा कर दिया। राजा ने उसे बहुत प्यार दिया, इतना कि उसका हृदय सपनों से भर जाए, आनेवाले कल के सपने, लेकिन उनका प्रेम अपने लिए एक पुत्र पाने की लालसा मात्र था। वे उसकी सुंदरता पर मोहित थे और एक बार भी उसे नहीं पूछा कि क्या उनकी प्रेमिका या अर्धांगिनी बनने की उसकी इच्छा है या नहीं। उन्होंने बस उसका उपभोग किया और इस प्रकार फेंक दिया, मानो उनके लिए उसके अस्तित्व का कोई महत्व नहीं रह गया हो।” [13]
स्त्री सिर्फ वस्तु है जो कर्तव्य का बोझ सहन करती है। माधवी भी उसी निरह वस्तु की तरह तीन राजाओं को पुत्र रत्न देती है और अंत में गुरु विश्वामित्र को भी।

सूत्रधार के द्वारा नाटककार ने स्त्री विमर्श के प्रमुख पहलुओं को उकेरा है। रचनाकार का मानना है और यह कहीं-न-कहीं सही भी है कि आज के समय की तुलना में शुरुआती दौर में स्त्री की स्थिति सही थी। प्रथम उस युग में माता सर्वोपरि थी वह परिवार की मुखिया थी। चार पुत्र होने के बाद भी माधवी के स्वयंवर रचना और राजाओं के द्वारा उसके प्रति चाह रखना यह सुनिश्चित करता है कि उस समय स्त्री के सतीत्व, कौमार्य महत्वपूर्ण नहीं है। परंतु आज के युग में इसे प्रमुखता से देखा जाता है। माधवी स्वयंवर नहीं स्वीकारती और वह सन्यासिनी बनती है। वह आसानी से तब पूजा-पाठ कर सकती थी परंतु नैतिक पतन का क्रमवार चल कर आज समाज का रूप परिवर्तित हो गया है।

इस नाटक की शुरुआत में ही भ्रूण हत्या की समस्या को दर्शाया गया है। यह समस्या समाज में आज आम समझी जाती है। आज अस्पतालों में, कचरे के डिब्बे में नवजात बच्ची को मार कर फेंक दिया जाता है। अगर वह जीवित होती तो इस दुनिया को सुंदर बनाती, अपने आप को उज्जल बनाती।

दूसरी समस्या जो पितृसत्ता की कुंठित मानसिकता को दर्शाती है। स्त्री को देखकर, उसके पहनावे को देखकर, उसके असमय बाहर निकालने के कारण पुरुष वर्ग अपनी मानसिकता खो बैठता है। यह आम धारणा है कि स्त्रियों को देखकर पुरुषों की मनस्थिति विचलित होती है। रम्भा जब नृत्य करती है तो विश्वामित्र का ध्यान टूटता है और वह उसे श्राप से पत्थर बना देते हैं। यह प्रसंग दर्शाता है कि पुरुषों को अपने इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं है।
“विश्वामित्र : नारी तुम्हारा नाम ही कामुकता है। तुम स्वर्ग नहीं बल्कि नर्क का द्वार हो। मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम हजारों वर्ष के लिए शीला बन जाओ।
रंभा : ….. आप जितेंद्रिय नहीं हैं। आपका अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण होना चाहिए, किंतु पुरुष अपनी विफलताओं और पतन के लिए स्त्रियों को ही दोषी ठहराते हैं। आप यह कैसे कर सकते हैं? आप मुझे श्राप दे रहे हैं, जबकि आपको स्वयं अपने आपको श्राप देना चाहिए। पापी तो आप हैं। संयम सीखिए, तब आपको दृष्टि प्राप्त होगी। आप मुझे दोष क्यों दे रहे हैं? अपनी प्रवृत्तियों को वश में करना सीखिए और बाकी सब अपने आप संभव हो जाएगा। अनंत काल से पुरुषों ने उन सारे पापों के लिए स्त्रियों को ही दोषी ठहराया है, जिन्हें स्वयं उन्होंने ही किया था। जो पापी है, उन्हें श्राप देने का अधिकार कैसे मिल सकता है?
स्त्रियों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने पर न जाने कब से शीला का रूप दिया जाता रहा है। ..... अनंत काल से ही स्त्रियों को पत्थर बनाया जाता रहा है। पुरुष चाहते हैं कि स्त्रियों के पास जो कुछ है, वह सब वे छोड़ दें, भावनाओं का त्याग कर दें। चलो, नारियों! हम अपने इस दु:ख की घड़ी में एक साथ खड़ी हो जाएँ।” [14]
आज के आधुनिक समाज का यथार्थ यह है कि स्त्री के कपड़ों को पुरुषों के दृष्टि दोष से जज किया जाता है। उनके पारिवारिक संस्कार के अवगुणों को लड़कियों के संस्कार से जोड़ा जाता है। रात को लड़कियां बाहर निकले यह उनके संस्कार में नहीं है और किसी कारणवश अंधेरे में सुनसान जगह से निकल जाए तो लड़कों के संस्कार बाहर आ जाते हैं, और दामनी, दिशा जैसी करोड़ों घटनाएं घट जाती है। आज के आधुनिक समय में शायद ‘बचाओ-बचाओ’ की ध्वनि भी सुनाई नहीं देती। चारों तरफ के शोर में लड़कियों की आवाज दब गई है। कुछ को बलात्कारी खुद मार देते हैं और कुछ जो संयोग वश बच जाती उसे पितृसत्तात्मक समाज संस्कार की दुहाई देकर मार डालते हैं।

दूसरे दृश्य में माधवी कई सपने बुनती है जैसे आधुनिक समय की स्त्रियां। परंतु उसे भी सही गंतव्य नहीं मिलता। कभी पुत्र के लालच में, कभी दहेज के लालच में और कभी योनेच्छा के कारण वह दमित होती रहती है। गालव माधवी को अपने साथ सौदा करने के लिए ले जाता है। इससे पहले इंद्र ने रम्भा को विश्वामित्र का ध्यान भंग करने और मनोरंजन के लिए भेजा था, किन्तु विश्वामित्र ने उस मनोरंजन रूपी वस्तु को तोड़कर पत्थर बना दिया। फिर ययाति ने गालव को दक्षिणा स्वरुप अपनी पुत्री को दान दे दिया और गालव ने उसका सौदा तीन राजाओं और विश्वामित्र के साथ किया। इस प्रकार का चक्रव्यूह औरतों के साथ समाज में हमेशा चलता है। जो औरत बिना डरे इसका विरोध करती है समाज उन्हें रम्भा की तरह मारकर, जलाकर, या एसिड फेंककर बदसूरत बना देता है। किसी भी रूप में उसे पत्थर में बदल दिया जाता है। जब वह टूट जाती है तो उसका सौदा दहेज के रूप में, कार्य स्थलों और समाज में यौन उत्पीड़न के रूप में, या वेश्यावृत्ति के रूप में कर दिया जाता है। माधवी उस पुरुष को जानती तक नहीं जिसके साथ वह एक रात बिताने वाली है। फिर भी वह पुत्र रत्न के साथ-साथ उस पुरुष के फंटेसी को भी पूर्ण करती है। राजा दिवोदास एक वेश्या की तरह माधवी से पूछता है,
“दिवोदास : तो तुम काम में कुशल हो, तुम जानती हो कि एक पुरुष कैसे प्रसन्न होता है?” [15]
अभी के सामाजिक और पारिवारिक ढांचे तो इससे भी बदतर है। गौर से देखा जाए तो लड़की को बहुत सारे दहेज के साथ विदा किया जाता है। साथ ही उस परिवार को एक नौकर, बच्चा जनने की मशीन और सभी को खुश रखने वाली चाबी के रूप में सौपा जाता है। अजीवन अपने शरीर पर रेंगने वाले पति रूपी कीड़े की जद्दोजहद को वह झेलती रहती है। इसके बावजूद उसके संस्कार, बोलचाल, देन-लेन पर हमेशा एक व्याख्यान सुनती है। वह पति और परिवार के हैंगओवर को उतारने की मशीन बन कर रहती है। इसमें से 60% महिला रूपी मशीन मार भी खाती रहती है। यह समाज का भद्दा यथार्थ है जिसे सदियों से स्त्रियाँ झेल रही हैं। एक बच्ची अपने घर में मनमौजी रूप में चहलकदमी करती और अचानक विवाह के बाद प्रौढ़ हो जाती है।

माधवी जहां भी जाती है उसकी सुंदरता को देखा जाता है, बल्कि उसके संपूर्ण जीवन में उसकी बुद्धि को कोई नहीं परखता। किसी वस्तु को खरीदा जाता है तो उसे मात्र एक वस्तु ही माना जाता है उसकी भावनाओं को कोई नहीं पूछता बल्कि उसे अपने अनुसार उपयोग करता है।
“कितना व्यर्थ है यह सब! इस सुंदरता का कोई मोल नहीं है। मैं एक दुल्हन की तरह तैयार हुई हूँ, लेकिन मेरा प्रेमी मेरा पति नहीं, बल्कि वह व्यक्ति है, जिसे मुझे बेचा गया है।” [16]
इस प्रकार के संवादों से नाटककार समाज में फैली वैश्यावृत्ति की धारणा को दर्शाना चाहती है। पुरुष हमेशा अपने आप को प्रथम रखना चाहते हैं उन्हें डर होता है कि कहीं उनका अधिकार खो न जाए, कहीं वर्चस्व कम न हो जाए। इसलिए स्त्री का उपयोग करने के बाद वह उस पर किए गए एहसानों का एहसास दिलाते हैं कि मैं तुम्हें स्वतंत्रता दे रहा हूँ, तुम उन्मुक्त विहार करों,
“गालव : जाओ माधवी, तुम्हारा कार्य पूर्ण हो गया है। तुमने मुझे मेरे ऋण से मुक्त कर दिया और इस कारण मैं तुम्हें बंधन से मुक्त करता हूँ। जाओ, मैं तुम्हें स्वतंत्रता देता हूँ।” [17]
आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ऐसे विचार खूब चरम पर है। पुरुष रूपी कोई भी सत्ता अपनी बहन, बेटी, पत्नी, बहू आदि को बोध कराते रहते हैं कि ‘मैंने तुम्हें जीने का अधिकार दिया है।’ स्त्री का सजीव होना, उसकी इच्छा, काबिलियत कुछ भी समाज नहीं मनाता, क्या स्वतंत्रता का स्त्री खुद से चयन नहीं कर सकती? पाठकवर्ग के मन में बार-बार यह प्रश्न उठता है। ‘महाभारत की माधवी’ आधुनिकता के ब्यूटीमिथ पर बहुत बड़ा सवाल उठाती है। इस कारण आज सामाजिक व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता है जिससे लड़कियां जीवन में समान अधिकार प्राप्त साथी को स्वीकार कर पाए।

संदर्भ :-
  1. महाभारत की माधवी - ममता मेहरोत्रा, भूमिका से
  2. वही, पृ. सं. 17
  3. वही, पृ. सं. 20
  4. वही, पृ. सं. 24-25
  5. वही, पृ. सं. 58
  6. वही, पृ. सं. 83
  7. वही, पृ. सं. 88
  8. वही, पृ. सं. 89
  9. वही, पृ. सं. 96
  10. वही, पृ. सं. 101
  11. औरत का कोई देश नहीं - तस्लीमा नसरीम, पृ. सं. 33
  12. महाभारत की माधवी - ममता मेहरोत्रा, पृ. सं. 58-59
  13. वही, पृ. सं. 65
  14. वही, पृ. सं. 23-24
  15. वही, पृ. सं. 72
  16. वही, पृ. सं. 56-58
  17. वही, पृ. सं. 8
प्रियंका कुमारी (शोधार्थी), हिंदी विभाग, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवेर्सिटी, हैदराबाद. संपर्क - priyanilpawan@gmail.com