Sahityasetu
A leterary e-journal

ISSN: 2249-2372

Year-3, Issue-6, Continuous issue-18, November-December 2013

हरेश परमार की कवितायेँ

दूर तक फैली है उदासी

दूर तक फैली है उदासी
दूर तक है मंजिल हमारी
छोटे छोटे ख्वाबों में जीते है
और छोटे छोटे दुखों को जेलते रहते है हम.
ख्वाबों को कहते है हम मंजिल हमारी
आसमानों को कहते है
अपनी बात.
न कोई सुनने वाला है और नाही है कोई हमदर्द.
सबके अपने दर्द है
अपनों में है सब पराये.
दर्द की इस महफ़िल में
मिलते है कुछ खुशी के आंशु.
उम्मीद को रखते है सिने में
चलते है अकेले राहों में
दूर तक फैली है उदासी
दूर तक है मंजिल हमारी


मैं इस समय की संतान

मेरे मुल्क में जिन्दा लोगो की कद्र नहीं है
मैं ऐसे मुल्क में रहता हूँ जहाँ मरने के बाद भी इंसान को जमीं नसीब नहीं है.
न्याय की पाठशाला में गैरहाजिर हूँ में
और जिन्दा लाशो में शुमार कर दिया है मुझे अब.
अब बरसों बीतते है
मगर मगर घड़ी का काँटा है की रुका हुआ सा कुछ कहता रहता है मुझे
अलबत, सुनता किसी की नहीं मैं और कहता हुछ किसीसे नहीं मैं.
अपने अंदर ही हूँ और बाहर घमासान हुए जा रहा है.
बंदरों की फ़ौज मिली हुई है
और शांति का पाठ चल रहा है,
हो रहा है संकल्प की कभी कुदा-कुद नहीं करेंगे.
सुनाने में आता है बहुत कुछ
पर आंखों में पट्टी बंधे पड़ा हूँ.
हाथो में जंजीरे दाल ली है मैंने खुद
कोई शिकायत करें तो जंजीरों से बंधे हाथ दिखलाता हूँ मैं.
मैं उन अराजक माहोल की संतान हूँ
जो हकीकत से भागता हूँ
होने देता हूँ बलात्कार, अन्याय, अत्याचार
जलने देता हूँ गरीबों, दलितो, आदिवासिओं के घर
अपनी आँखे मूंदे होने देता हूँ अपने पर गुलामों सा व्यवहार
मैं इस देश की गुलाम संतान हूँ
और पैदा करता हूँ खामोश गुलामी की नश्ले ...
अंग्रेजी हो या देशी
अब कुत्ते की तरह भौंकने की ताकत भी नहीं.
जिंदगी जैसे एक समंदर है
जिसमें आत्महंता की तरह अपने आपको डूबोते रहता हूँ
जीवन और मौत के फासले बढ़ाते रहता हूँ.


मौजो की तरह

एक बात जो थी जिंदगी में 
खो गई है ....
रह रहे है राहों में 
अब साँस खो गई है.
मंजिलें आते आते चली गई है
और दोस्तों ! हम मुसाफिर ही रहे !
समंदर तो नहीं है हम 
फिर भी किनारों पर मौजो की तरह उछलते हम रहे ...


ये लम्हे

आज़ाद है लम्हे वो जो गुजर गए 
गुलाम है ये लम्हे जो चल रहे है. 
अजीब जिंदगी है भला 
टेढ़े मेढे लम्हों को संभाल भी नहीं सकती.

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हरेश परमार (Haresh Parmar)
Assi. Prof. Gujarati Vibhag,
D.K.V. Arts and Commerce College,
Jamnagar (Gujarat) Mo. 09408110030

Email : hareshgujarati@gmail.com