वेश्याओं के जीवन पर केन्द्रित एक यथार्थवादी उपन्यास ‘आज बाजार बंद है’

देहव्यापार पर केन्द्रित वेश्याओं के जीवन पर आधारित इधर कई उपन्यास आए हैं। विविध विमर्शों में, खासकर स्त्री-चेतना एवंएवं दलित-चेतना संपन्न लेखकों को यह विषय हमेशा आकर्षित करता रहा है। मधु कांकरिया का ‘सलाम आखिरी’, अलका सरावगी का ‘शेष कादंबरी’ आदि उपन्यास वेश्या-जीवन के तमाम कटु पहलुओं को बड़ी गंभीरता से विमर्श का विषय बनाते हैं। इसके पूर्व जगदंबा प्रसाद दीक्षित का प्रचलित उपन्यास ‘मुर्दाघर’ संभवत: बड़े फलक पर वेश्याजीवन को प्रतिबिंबित करनेवाला पहला मौलिक उपन्यास है। इस उपन्यास की नायिका मैना को वेश्या व्यवसाय करते हुए पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है। उसे हवालात में बंद किया जाता है। लेकिन उसका पति उसे जाकर मिलता है और उसे शरीउ घर की औरत बताकर छुड़ाकर ले जाने की बात करता हैष तब मैना उसका विरोध करते हुए कहती है, “तेरे बोलने से क्या होता! मैं रंडी हूँ... सब लोग कू मालूम। मैं खुद बोलती... मैं रंडी हूँ।... और तू..... मेरा मरद होके मेरे से अईसा काम करवाता... मेरी कमाई खाता...मैं”1 स्पष्ट है कि मैना के कथन से नारी को अपनी मजबूर करनेवाले पुरुष का पति के खिलाफ बोलने लगी है।
नारी अपने जिस्म को बहुत बार स्वेच्छा से नहीं, बल्कि मजबूरी से बेचती है। कभी-कभी परिवारवालों के कहने के बाद भी तथा परिवार का बोझ ढोने के लिए भी उसे अपनी देह को कमाई का साधन बनाना पड़ता है। लगभग सभी उपन्यासकारों ने, जिन्होंने भी वेश्याजीवन पर कलम चलाई है वैश्याजीवन के इन दोनों कारणों पर प्रकाश डाला है। लगभग सभी वेश्याओं के एक जैसे नाम, एक जैसे काम तथा एक जैसी स्थितियाँ होती हैं। ग्राहक भी सभी एक जैसे ही होते हैं। जो पुरुष वैश्यालय में जाता है वह प्रेम नहीं, मैथुन करने जाता है। वह पैसा देकर अपने आवेश को शांत करता है। ज्यादातर इस कर्म को क्रूरता से करते हैं। वे पूरी निर्ममता से स्त्रियों को भोगते हैं। इस निर्ममता का चित्रण भी लगभग सभी उपन्यासों में देखने को मिलता है।
इसके बावजूद वरिष्ठ दलित लेकक मोहनदास नैमिशराय ने ‘आज बाजार बंद है’ उपन्यास लिखा और वेश्याजीवन को इसका कथ्य बनाया तो इसका कारण क्या है? उन्हीं के शब्दों में, “वेश्याओं के जीवन, संघर्ष तथा उनकी समस्याओं पर लिखने का लंबं समय से मन था। इसलिए कि राष्ट्र की बेटियों पर वैसा उपन्यास लिखा नहीं गया। हालाँकि उन पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। कुछ लेखक-कथाकारों ने तो बहुत करीब से उनके दुख-दर्दों को देखा और समझा हुआ है। बावजूद इसके उनके जीवन की विभिन्न परिस्थितियों पर नये सिरे से लिखने की आवश्यकता थी। वेश्या वृत्ति से जुड़े फिल्मों और किताबों में वेश्याओं तथा रक्कासाओं के पात्रों को ग्लेमराइज्ड करके प्रस्तुत करने की परंपरा रही है।व”52 वे आगे लिखते हैं कि पुरुष की शारीरिक भूख मिटाने के लिए भारतीय समाज और विशेष रूप में हिन्दू समाज ने वेश्यावृत्ति को जायज माना है। देश में ऐसे बहुत कम महापुरुष हुए हैं जिन्होंने वेश्यावृत्ति समाप्त करने के लिए आंदोलन किए। बाबा साहब आंबेडकर उनउनमें प्रमुख हैं। उनके अनुयायियों ने भी वेश्यावृत्ति समाप्त करने के लिए बाबा साहब के आंदोलन को यथासंभव आगे बढाया। किन्तु कुछ एन.जी.ओ तथा सरकार अप्रत्यक्ष रूप से जैसे हथियार डाल चुकी है और वेश्या-जीवन को स्वीकृति देकर उसे उद्योग का दर्जा एवं वेश्याओं को सेक्सवर्कर का दर्जा देने को आतुर है। समय-समय पर वेश्यावृत्ति को कर्मवाद और भविष्यवाद के सनातनी विचार से भी जोड़ा जाता रहा है। यानी कि स्वीकार कर लिया गया है कि इस स्थिति को बदला नहीं जा सकता। वेश्यावृत्ति कभी भी खत्म नहीं की जा सकनेवाली प्रवृत्ति है। तो कुछ लोग इसे स्वस्थ समाज के लिए जरूरी भी समझते हैं। ऐसी सामाजिक, मनोवैज्ञानिक स्थिति में श्री मोहनदास नैमिशरकाय ने ‘आज बाजार बंद है’ उपन्यास लिखा है तो जाहिर है कि यह उपन्यास अपने पूर्ववर्ती उपन्यासों की तुलना में कहीं विशेष है।
‘आज बाजार बंद है’ वेश्याओं के जीवन पर केन्द्रित एक यथार्थवादी उपन्यास है। यथार्थवादी इस अर्थ में कि इसमें नैमिशराय के निजी जीवन के अनुभवों को दस्तावेजित किया गया है। इस उपन्यास की प्रमुख नायिका पार्वती है, किन्तु मुख्य नायिका के सिवाय शबनम, हसीना, मुमताज, बीना, सलमा, पायल, चंपा, चमेली, गुलाब, रूखसाना, शम्मी, हमीदा, जीनत, जरीना, हाजरा, कुसुम, फूल, सुमन, गफूरन आदि अनेक वेश्याएँ हैं। जाहिर है कि ये उन वेश्याओं के असली नाम नहीं हैं और वेश्या-जीवन अपनाने के बाद दिए गए नकली नाम है। किन्तु उनकी स्थितियाँ सही हैं और इनमें से अधिकांश दलित वर्ग की या मुस्लिम हैं और धोखे से या मजबूरी मेंयह जीवन जी रही हैं। ये वेश्याएँ भी सामान्य नारियों की तरह आम जीवन जीना चाहती हैं पर ऐसा हो नहीं पाता। उपन्यासकार लिखता है -“मैं एक वेश्या के कोठे पर पहुँचने में सफल हो गया था। फरवरी का माह और गुलाबी मौसम की दस्तक। बीस वर्षीय युवती साथ में दो अन्य पुरुष साथी कोठे पर मौजूद थे। वे तीनों अंगीठी के पास बैठे हुए चा पी रहे थे। बिल्कुल जैसा आम परिवारों में होता है। उसके माथे पर किसने लिखा था कि उनमें से मामादा साथी वेश्या है। उसका स्वभाव भी दूसरी लड़कियों जैसा ही था।”3
सुमीत ‘आज बाजार बंद है’ उपन्यास का मुख्य नायक है। उसका प्रवेश उपन्यास में बहुत कुछ बाद में होता है। वह पत्रकार है और अलीगढ़ से काम की तलाश में आया था। लेखक होने के अलावा वह पत्रकारिता भी करता है। इसी वजह से वह वेश्या जीवन को निकट देख पाता है। उनके निकट आने के कारण ही उसे उनके जीवन की सच्चाई को करीब से जानने-समझने का मौका मिलता है। उसे वेश्या जीवन और परिवार में अन्य सामान्य भारतीय परिवारों में कोई मूलभूत फर्क नजर नहीं आता। वेश्याओं के जीवन, उनकी वाणी उनका व्यवहार सब आम गृहिणियों जैसा ही है। दूसरी तरफ सभ्य घराने की यवतियाँ एवं महिलाएँ अपने शौक को पूर्ण करने के लिए होटलों में कालगर्ल्स के रूप में छिपकर देह-व्यापार करती है। पार्वती और सुमीत दोनों एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। किन्तु उनका आकर्षण शारीरिक नहीं, वैचारिक समानता का है। पार्वती का दुख जानने के बाद सुमीत उसे भोगना नहीं मुक्त करना चाहता है। वह कहता है, “तुम बहुत जल्दी इन पिंजरों से मुक्त हो जाओगी।प”4
मोहनदास नैमिशराय की दृष्टि बहुत पैनी है। उन्होंने बड़ी बारीकी से इस संसार का वर्णन किया है। वेश्याओं की सीलन भरी कोठरियाँ, सौंदर्यप्रसाधन, अंग भंगिमा, ग्राहकों की हरकत, पुलिस की परेशानियाँ, ब्राह्मण देवता की कामलीला, लोगों की अंधश्रद्धा, अज्ञानता, वेश्याओं के उत्सव उनकी मान्यताओं आदि का ऐसा जीवंत चित्रण किया है मानो ये सारे चित्र चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूम रहे हों, “सावधान होकर जाओ, ऊपर रंडियाँ रहती हैं। जो जिस्म से जिस्म की भाषा की तब्दीली में विश्वास करती है। केवल एक मंजिल की सीढ़ियाँ चढ़ने में वे सभी हाँफने लग थे। दिन का समय होने पर भी सीढ़ियाँ के आसपास अंधेरा था। लगता था जैसे किसी तहखाने की सीढ़ियों सेजा रहे हों वे। सीढ़ियों के स्टैप ऊंचे तथा खुरदरे थे। जिनका पत्थर कहीं-कहीं से उखड़ गया था। दीवारें भदरंग थीं। पुराना मकान होने के कारण स्टैप की संख्या काफी थी।”55 तथा “भीतर कमरे में दो, तीन औरतें लापरवाही से बैठी थीं। गर्मी के कारण एक ने दोनों जांघों तक पेटीकोट खिसकाया हुआ था। दूसरी जैसे ब्लाउज के हुक लगवाना ही भूल गई थीं। मुँह में पान, सुर्ख होठ, आँखों में काजल, उनके बीच भरे बदन की औरत। जिसकी छातियाँ खुली हुई और बाल लापरवाही से बिखरे थे। किसी शायर की गजल जैसी, उसकी आँखों में रहस्यपूर्ण मुस्कान थी। तीसरी ने खाली स्कर्ट पहना हुआ था और वक्षस्थल पर लापरवाही से गीला तोलिया रखा हुआ था। चौथी वेश्या किसी गृहिणी की तरह सलीके से पूरे कपड़े पहने सोई हुई थी।”6
वेश्याओं के उत्सव और उनकी मान्यताओं का भी उपन्यासकार ने सजीव चित्रण किया है, देखिए, “बंबई से उत्तरी भारत के एक शहर में वह लायी गई तो उत्सव धमिता से धीरे-धीरे जुड़ने लगी। दक्षिण भारतीय होने के नाते वह लायी गई तो उत्सव होते थे। उन उत्सवों पर अभी भी मातृसत्तात्मक समाज का प्रभाव था। जहाँ योनी पूजा होती थी। वर्षाऋतु के आगमन पर वेश्एँ अपने-अपने आँगन में आग जलाती और गीत गाते हुए अपने नीचे के कपड़े को उठाकर अपनी-अपनी योनियों  को आग में तापती थी। इसके पीछे मान्यता थी कि वे योनि को पवित्र करती है। दक्षिण में लिंग पूजा का चलन नहीं था। अधिकांश औरतें योनिपूजा करती थी। पार्वती स्वयं गर्मियाँ के बाद इस अनुष्ठान को करती थी। देखा-देखी मुमताज और साधना भी करने लगी थी। धीमी आंच में योनि की सिकाई करते हुए एक अजीब तरह की तृप्ति के साथ रोमांच भी होता था। वे गीत गाते हुए आग से आग का रिश्ता बनाती।”7
इस तरह ‘आज बाजार बंद है’ नारी उत्पीडन विशेषकर दलित नारी उत्पीडन के उस काले इतिहास को प्रस्तुत कता है जिसमें दलित देवदासियों से लेकर वेश्याओं के जीवनक की दुखभरी कहानी है।

संदर्भ-सूचि

  1. ‘मुरदाघर’, जगदंबा प्रसाद दीक्षित, पृ. 64
  2. ‘आज बाजार बंद है’, मोहनदास नैमिसराय, पृ. 5
  3. वही, पृ. 8
  4. वही, पृ. 87
  5. वही, पृ. 24
  6. वववही. पृ. 25
  7. वही, पृ. 64

फूलचंद गुप्ता

आसि. प्रोफेसर
साबरग्राम सेवा महिविद्यालय, सोनासन,
जि. सांबरकांठा मो. 9426379499

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